महर्षि वेदव्यास महान ज्ञानी त्रिकाल दर्शी और ज्ञान के सबसे बड़े ऋषि थे। इन्होंने जटिल वेदों को चार भागों में विभक्त कर दिया जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के नाम से जाने जाते है। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन वेदों को आगे भी इन्होंने विभक्त कर १८ महापुराणों की रचना की। महर्षि वेदव्यास ने पांचवे वेद के रूप में पुराणों की भी रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में बताया गया है। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने २८ बार वेदों को संशोधित किया था। महर्षि वेदव्यास को महाभारत के रचयिता के रुप में भी जाना जाता हैं।
महर्षि व्यास को भगवान विष्णु का १८वां अवतार माना जाता है। इन्हें भगवान विष्णु का कालावतार भी कहा जाता है। महर्षि व्यास का जन्म ३००० ई. पूर्व आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। महर्षि वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर थे। उनकी माता का नाम सत्यवती था। कहा जाता है कि महर्षि व्यास द्वापर युग तक जीवित रहे। महर्षि व्यास का जन्म स्थान नेपाल में स्थित तानहु जिले के दमौली में बताया जाता है। महर्षि व्यास ने जिस गुफा में बैठकर महाभारत की रचना की थी, वह गुफा आज भी नेपाल में मौजूद है।
महार्षि वेद व्यास जी इतने ज्ञानी थे कि उन्होनें अपनी दिव्य दृष्टि से यह पहले से ही जान लिया था कि कलयुग में मनुष्यों की शारीरीक और बौद्धिक क्षमता दोनों घट जाएगी। बौद्धिक क्षमता के कम होने के कारण ही कलयुग में मनुष्य वेदों का अध्ययन करने और समझने में असमर्थ रहेगा। कलयुग में भी मनुष्य को वेदों का सभी ज्ञान हो सके इसलिए व्यास जी ने वेदों को चार भागों में बांटा था जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद है।
इसके अलावा भी जो लोग वेदों का अध्ययन करने में असमर्थ हैं। उनके लिए वेद व्यास जी ने महाभारत की रचना की थी। महाभारत में वेदों की सभी बातों का समावेश है । महाभारत में धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, उपासना और ज्ञान-विज्ञान की बातों को आसानी से समझाया गया है। वेद व्यास जी ने लोगों के कल्याण और धर्म का प्रचार करने और प्रभु की भक्ति के लिए अठारह वेदों की रचना की थी। इन वेदों में व्रत विधि , तीर्थ स्थानों का महात्मय आदि सब विस्तार से बताया गया है। महार्षि वेद व्यास जी ने वेदांत दर्शन की भी रचना की है । जिन्हें उन्होंने बड़े ही सरल छोटे- छोटे सूत्रों के माध्यम से समझाया है।