लोक और आस्था से जुड़ा है कुंभ, जाने इसका महत्व

Aazad Staff

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15 जनवरी को मकरसंक्राति के पहले शाही स्नान के साथ ही प्रयागराज में कुंभ का शुभारंभ हो जाएगा। इसे लेकर तैयारियां भी जोरो पर है। तकरीबन 2 महीने चलने वाले इस आयोजन में संगम नगरी प्रयाग को सांस्कृतिक रंगों में सराबोर करने में प्रशासन जुट चुकी है।

इस साल कुंभ का आयोजन प्रयागराज में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। कुंभ का शुभआरंभ 15 जनवरी से हो रहा है और इस मेले का समापन 4 मार्च को महा शिवरात्रि के दौरान किया जाएगा। पूरे 50 दिनों तक चलने वाले इस इस अर्द्ध कुंभ मेले को लेकर कई प्रकार की आस्था और पौराणिक कथाए जुड़ी हुई है। तो आइये जानते है कुंभ मेले से जुड़ी कुछ दिलचस्प और रोचक बाते

कहते हैं कुंभ मेले के दौरान श्रद्धा भाव सबसे उच्चतम माना जाता है। जो जितनी ज्यादा श्रद्धा से यहां आता है उसकी उतनी ही मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इन मान्यताओं की उत्पत्ति हिन्दू धर्म के विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में उल्लिखित है। कुंभ मेले में स्नान करने हेतु मोक्ष प्राप्ति का भी फल प्राप्त होना माना गया है। कूर्म पुराण के अनुसार इस उत्सव में स्नान करने से सभी पापों का विनाश होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। यहां स्नान से देवलोक भी प्राप्त होता है।

आस्था से जुड़ा है यह पर्व -

यह एक ऐसा पर्व है जो हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्व में से एक है। यह मेला अपने पौराणिक इतिहास के साथ कुंभ पर्व स्थलों के कारण भी काफी प्रसिद्ध है। भारत में केवल चार ऐसे स्थल हैं जहां कुंभ मेले का एक बड़े स्तर पर आयोजन किया जाता है। लेकिन केवल चार ही क्यों? चार से कम या ज्यादा क्यों नहीं? और केवल यही चार स्थल क्यों? इनके अलावा किसी अन्य स्थल पर कुंभ मेले का आयोजन करना सही क्यों नहीं माना जाता? तो आइये जानते है इसके पिछे जुड़ी पौराणिक कथा?.

यह कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। कहते हैं महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था। सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी।

भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता राक्षसों के साथ संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए। समुद्र मंथन से अमृत निकलते ही देवताओं के इशारे पर इंद्र पुत्र ?जयंत? अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर राक्षसों ने अमृत लाने के लिए जयंत का पीछा किया, और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और दानव में 12 दिन तक भयंकर युद्ध होता रहा। कहते हैं कि इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश से अमृत की बूंदे गिरी थी। जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में गिरी तो दूसरी शिव की नगरी हरिद्वार में इसके बाद तीसरी बूंद उज्जैन में तो चौथी बूंद नासिक में।

यही कारण है कि कुंभ के मेले को इन्हीं चार स्थानों पर मनाया जाता है। देवताओं के 12 दिन, मनुष्य के 12 वर्ष के तुल्य होते हैं। अतः कुंभ भी 12 होते हैं। उनमें से 4 कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष 8 कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगन हि प्राप्त कर सकते हैं।

स्नान का विशेष महत्व

स्कन्द पुराण के अनुसार कुंभ मेले के दौरान भक्ति भावपूर्वक स्नान करने से जिनकी जो कामना होती है, वह निश्चित रूप से पूर्ण होती है। अग्निपुराण में कुंभ मेले को गौ दान से भी जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है कि इस उत्सव में श्रद्धापूर्वक स्नान करने से वही फल प्राप्त होता है जो करोड़ों गायों का दान करने से मिलता है।

इसके अलावा कुंभ मेले में स्नान करने हेतु मोक्ष प्राप्ति का भी फल प्राप्त होना माना गया है। कूर्म पुराण के अनुसार इस उत्सव में स्नान करने से सभी पापों का विनाश होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। यहां स्नान से देवलोक भी प्राप्त होता है।

कुंभ में स्नान के लिहाज से ये दिन होते है महत्वपूर्ण -

? मकर संक्रांति
? पौष पूर्णिमा
? मौनी अमावस्या
? वसंत पंचमी
? माघ पूर्णिमा
? महाशिवरात्रि

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