जिनकी छत्र-छाया में मेवाड़ ने सांस्कृतिक बुलंदियों को छुआ| कुम्बा का जन्म १४३३ में हुआ | महराणा कुम्बा ना की विशाल व्यक्तिव के थे बल्कि महाराणा कुम्बा जो की अपने तीस साल के शासन काल में एक भी युद्ध नहीं हारे थे | राणा कुम्बा न केवल एक अच्छे शासक थे बल्कि एक बड़े योद्धा भी थे| कुम्बा मेवाड़ के राणा मुखल सिंह के पुत्र थे और उनकी माता का नाम सौभ्य देवी था वह राजपूत में सिसोदिया से थे | राणा कुम्बा की मृत्यु १४६८ में हुई |
महाराणा कुम्बा सात फ़ीट लम्बे थे बैठे-बैठे ही पूजा कर लेतै थे | कुर्ला से खैरबरा तक कुमालगढ़ से चित्तोरगढ तक फैला १५०० साल पुराना दुनिया के सबसे पुराना मेवाड़ राज्य है और शक्ति सिंह इसके वंशज है और मेवाड़ का इनकी इतिहास इनकी आप बीती है|
Kumbalgarh Fort
ऐसा नहीं था कि राणा की गद्दी मकमल की बनी थी मेवाड़ को डसने के लिये हमेशा तैयार थे लोग, लेकिन राणा की तलवार हमेशा उनके खून से रंगी थी,१४४० में कुम्बल गढ़ बनाया गया इससे पहले चित्तौरगढ़ का किला था, महाराजा कुम्बा के बड़े बेटे थे उदय जिनके छोटे भाई थे रायमल दोनों भाई राणा कुम्बा पर जान छिड़कते थे |राणा कुम्बा संगीत के दिग्गज थे और वीडा के बहुत बड़े शौक़ीन |
राणा कुम्बा को यकीन और उम्मीद थी उनकी संतान बड़े होकर उनके नक़्शे कदम पर चलेगी उनके बड़े बेटे उदय को संगीत में कोई रूचि नहीं थी उनकी रूचि कुछ अलग ही थी |
कुम्भलगढ़ ("कुंभल किला") पश्चिमी भारत में राजस्थान राज्य के उदयपुर के पास अरवलीली पहाड़ियों की पश्चिमी सीमा पर एक मेवार का गढ़ है। यह राजस्थान के हिल फोर्टों में शामिल एक विश्व धरोहर स्थल है। राणा कुंभ द्वारा 15 वीं शताब्दी के दौरान कुंभलगढ़ भी महाराणा प्रताप का जन्म स्थान रहा है|
कुम्भलगढ़ उदयपुर से 82 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। चित्तौरगढ़ के बाद मेवाड़ में यह सबसे महत्वपूर्ण किला है।कुम्बलगढ़ किला की दीवार 36 किलोमीटर लम्बी तथा 15 फीट चौड़ी है किला का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था इस दुर्ग के पूर्ण निर्माण में 15 साल (1443-1458) लगे थे। दुर्ग का निर्माण पूर्ण होने पर महाराणा कुम्बा ने सिक्के बनवाये थे जिन पर दुर्ग और इसका नाम अंकित था| इस दुर्ग के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर तथा बाकि हिन्दू मंदिर हैं। यहीं पर पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था। महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर उनका पालन पोषणभी किया था। हल्दी घाटी के युद्ध में हार के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी दुर्ग में रहे।
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1443 में राणा कुम्भा ने इसका निर्माण शुरू करवाया पर निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ पाया, निर्माण कार्य में बहुतसारी अड़चने आने लगी। राजा यह बात सुन कर बहुत दुखी हुए ओर संत को बुलवाया | संत ने बताया यह काम तभी आगे बढ़ेगा जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से संत ने आज्ञा मांगी।
लखोला टैंक किला के अंदर सबसे उल्लेखनीय टैंक है, राणा लक्ष्मा द्वारा निर्मित यह केलवाड़ा शहर के पश्चिमी भाग में स्थित है और 5 किमी (3.1 मील) की लंबाई 100 मीटर (0.062 मील) से 200 मीटर (0.12 मील) चौड़ाई में फैली हुई है। स्वतंत्रता के दौरान टैंक की 40 फीट (12 मीटर) की गहराई थी और तब से इसे बढ़ाकर 60 फीट (18 मीटर) हो गया है। अररेट पोल पश्चिमी दिशा में द्वार है, प्रवेश द्वार से एक खाली ढलान के साथ हला पोल, बालावी के पास राम पोल और हनुमान पोल किले के प्रमुख द्वार हैं।
कुम्बलगढ़ किला का नाम विश्व के दूसरे स्थान पर आता है | इस दुर्ग को बहुत सी घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है दुर्ग की ऊँची स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि पर कृषि कार्य के लिए किया गया | इस किले के अंदर १० घोड़े एक ही समय में दौड़ सकते है क्योकि इसकी चौड़ाई ज्यादा है |
महाराणा कुम्बा की याद में राजस्थान पर्यटन विभाग कला और वास्तुकला के प्रति किले में तीन दिवसीय वार्षिक त्यौहार का आयोजन करता है। किले के साथ ध्वनि और प्रकाश शो का आयोजन किया जाता है। त्योहार के दौरान अन्य घटनाओं में हेरिटेज फोर्ट वॉक, पगड़ी बांधने, युद्ध का टग और मेहेन्दी मंडाना शामिल हैं।
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कुम्बलगढ़ किला में रोज रात में लाइट शो का आयोजन भी किया जाता है |
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