कालिदास का शाब्दिक अर्थ ?काली का सेवक? होता है। संस्कृत भाषा के एक महान नाटककार और कवि थे। ऐसा माना जाता है कि काली दास ने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की। कालादास के ऋतु वर्णन को बहुत ही सुंदर हैं और उनकी उपमाएं बेमिसाल हैं मानी जाती है।
महाकवी कालिदास वास्तव में गुप्त राजवंश के काल से थे और कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि वह उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नों में से एक थे।
प्रारंभ में कालिदास मंदबुध्दी तथा अशिक्षित थे। कुछ पंडितों ने छल कपट कर या फिर ये कहे कि राजकुमारी विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में पराजित हो चुके पंडितो ने बदला लेने के लिए उनका विवाह कालिदास के साथ करा दिया। हालांकि जब इस हबात का विद्योत्तमा को पता चला तो वे अत्यन्त दुखी तथा क्षुब्ध हुई। उसकी धिक्कार सुन कर कालिदास ने विद्याप्राप्ति का संकल्प किया तथा घर छोड़कर अध्ययन के लिए निकल पड़े और विव्दान बनकर ही लौटे।
कालिदास को सर्वाधिक प्रसिध्दि तब मिली जब उनका नाटक ?अभिग्यांशाकंतलम? लिखा। आज विश्व की अनेक भाषाओँ में इस नाटक का अनुवाद हो चुका है। उनके दुसरे नाटक ?विक्रमोर्वशीय? तथा ?मालविकाग्निमित्र? भी उत्कृष्ट नाट्य साहित्य के उदाहरण हैं।
काली दास के तीन नाटक जो आज भी प्रसिद्ध है-
1.अभिज्ञान शाकुंतलम् 2.मालविकाग्निमित्र 3.विक्रमोर्वशीय।
कालीदास के चार काव्य-ग्रंथ हैं
1.रघुवंश
2.कुमारसंभव
3.मेघदूत
4.ऋतुसंहार।