आधुनिक भारत के निर्माता और भारतीय पुर्नजागरण के जनक के तौर पर जाने जाने वाले राजा राम मोहन राय ने 19वीं सदी में समाज सुधार के लिए व्यापक आंदोलन चलाए।
आज इस देश में समाजिक बुराई पर खुलकर बात करने की आजादी है, इन बुराइयों के खिलाफ कई कड़े कानून भी बने हैं। लेकिन इस आजादी को हासिल करने में सालों तक संघर्ष की लड़ाई लड़नी पड़ी जिसके पिछे सबसे महत्वपूर्ण और अहम भूमिका निभाने वाले थे राजा राम मोहन राय तब जा कर आज हमें ये आजदी मिल सकी है।
भारत में 200 साल पहले ऐसी कुरीतियां थी जो हमारे समाज को एक बेडियों की तरह जकड़ी हुई थी। इन बेडियों का सामना खास कर महिलाओं के मत्थे था जिनका उल्लंघन करने का साहस किसी में नहीं था। फिर चाहे वो बाल विवाह हो या सती प्रथा।
महिलाओं को आजादी के पंख देने वाले राजा राम मोहन राय ही थे जिन्होने इन कुरीतियों का डट कर सामना किया। राजा राम मोहन राय ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी, जो पहला भारतीय सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन माना जाता है। ये ऐसा दौर था जब भारत में दौहरी लड़ाई लड़ी जा रही थी।पहली अंग्रेजों से देश को मुक्त कराने की लड़ाई और दूसरी देश के लोगों को सामाजिक कुरीतियों से मुक्त कराने की लड़ाई।
स्ती प्रथा, राजा राम मोहन राय के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी ? सती प्रथा को बंद कराना। उन्होंने ही अपने कठिन प्रयासों से सरकार द्वारा इस कुप्रथा को ग़ैर-क़ानूनी दंण्डनीय घोषित करवाया। उन्होंने इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। यह आन्दोलन समाचार पत्रों तथा मंच दोनों माध्यमों से चला।
राजा राम मोहन राय ने महिलाओं को आजादी दिलाने के साथ साथ जाती प्रथा का भी घोर विरोध किया। इसके साथ ही उन्होने जाति-व्यवस्था, शिशु हत्या, अशिक्षा को समाप्त करने के लिए मुहिम चलाई और जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली।
जीवन से जुड़ी बाते-
जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के राधानगर गांव में 22 मई 1772 को हुआ था। पिता का नाम रमाकान्त राय एवं माता का नाम तारिणी देवी था। उनके प्रपितामह कृष्ण चन्द्र बर्नजी बंगाल के नवाब की सेवा में थे। उन्हें राय की उपाधि प्राप्त थी। ब्रिटिश शाशकों के समक्ष दिल्ली के मुगल सम्राट की स्थिति स्पष्ट करने के कारण सम्राट ने उन्हें राजा की उपाधि से विभूषित किया था। प्रतिभा के धनी राजा राम मोहन राय बहुभाषाविद् थे।
15 वर्ष की आयु तक उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी और पारसी भाषा का ज्ञान हो गया था। किशोरावस्था में उन्होंने काफी भ्रमण किया और 1803-1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम भी किया। अंग्रेजी भाषा और सभ्यता से प्रभावित राय 17 वर्ष की आयु में मूर्ति पूजा के विरोधी हो गए थे।
विवाह -
राजा राम मोहन राय ने तीन शादियाँ की थी, इनमें एक विवाह उन्होने अंतरजातीय की थी। इनकी पहली शादि बहुत ही कम उम्र में हुई थी, जो बहुत ही कम समय में इनका साथ छोड़ कर चली गई थी | इसके बाद इन्होने दूसरी शादी की वो भी इनका साथ लम्बे समय तक नहीं निभा सकी, इन दोनों के दो पुत्र राधाप्रसाद और रामप्रसाद थे | तत्पश्चात इन्होने उमा देवी से शादी की इन्होने इनका साथ उम्र भर दिया | और सन 27 सितम्बर 1833 को राजा राममोहन रॉय का निधन इंग्लैंड में हुआ
27 सितंबर 1833 को उनका इंग्लैंड में निधन हो गया। ब्रिटेन के ब्रिस्टल नगर के आरनोल वेल कब्रिस्तान में राज राम मोहन राय की समाधि बनाई गई है। जिसके आगे आज भई लोग श्रद्धा से नमन करते है।