देश को गुलामी की जंजीरों से आज़ादी दिलाने के लिए हजारों लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, नाना साहब पेशवा, शिवाजी राव जैसे कई महान राजाओं ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। इनमें से ही एक नाम ऐसा भी है जो देश के बलिदान के लिए आज भी जाना जाता है। हम बात कर रहे है रामगढ़ की रानी अवंती बाई लोधी की।1857 की क्रांति की प्रणेताओं में अग्रणीं थीं लेकिन इतिहास में समुचित स्थान नहीं पा सकीं।
रानी अवंतीबाई लोधी का जन्म 16 अगस्त 1831 में हुआ था। रानी अवंतीबाई के पिता ?राव जुझार सिंह? सिवनी जिले के मनकेहड़ी के जागीरदार थे। रानी अवंतीबाई का विवाह कम उम्र में ही रामगढ़ के राजा विक्रमाजीत के साथ कर दिया गया था। विक्रमाजीत बहुत ही योग्य और कुशल शासक थे किन्तु अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण वह राजकाज में कम सत्संग एवं धार्मिक कार्यों में अधिक समय देते थे। इनके दो पुत्र हुए शेर सिंह और अमान सिंह।
कम उम्र में ही इनके सर से पिता का साया उठ गया। राज्य का कार्यभार रानी अवंती बाई के कंधों पर आ गया। अवंती बाई द्वारा राजकाज करने का समाचार पाकर गोरी सरकार ने 13 सितंबर 1851 को रामगढ़ राज्य को कोर्ट ऑफ वाइस के अधीन कर राज्य प्रबंध के लिए एक तहसीलदार नियुक्त कर दिया।
1857 की क्रांति में ब्रिटिशो के खिलाफ साहस भरे अंदाज़ से लड़ने और ब्रिटिशो की नाक में दम कर देने के लिए उन्हें याद किया जाता है। कहा जाता है की वीरांगना अवंतीबाई लोधी 1857 के स्वाधीनता संग्राम के नेताओं में अत्यधिक योग्य थीं कहा जाए तो वीरांगना अवंतीबाई लोधी का योगदान भी उतना ही है जितना 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का था।
महारानी अवंतीबाई लोधी ने सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रेंजो से खुलकर लोहा लिया था और अंत में भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी थी। 20 मार्च 1858 को इस वीरांगना ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए युध्द लडते हुए अपने आप को चारो तरफ से घिरता देख स्वयं तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया।