भारत रत्न से सम्मानित प्रख्यात शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की आज 102 वीं जयंती है। बिस्मिल्लाह खान का जन्म 21 मार्च 1916 में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। 6 साल की कम उम्र में ही उन्होने शहनाई से मानो दोस्ती कर ली थी। उन्हें शहनाई वादन के लिए पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री समेत दर्जनों पुरस्कारों से नवाजा गया।उन्होंने 14 साल की उम्र में सार्वजनिक जगहों पर शहनाई वादन शुरू कर दिया था। हालांकि, 1937 में कोलकाता में इंडियन म्यूज़िक कॉन्फ्रेंस में उनकी परफॉर्मेंस से उन्हें देशभर में पहचान मिली। उन्होंने एडिनबर्ग म्यूजिक फेस्टिवल में भी परफॉर्म किया था जिससे दुनिया भर में उन्हें ख्याति मिली। 1947 में लाल किले पर झंडा फहरने के बाद उन्होंने शहनाई की तान छेड़ी थी। बिस्मिल्लाह को 1956 में ही संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है।
उस्?ताद बिस्मिल्?लाह खान की शहनाई की धुन बनारस के गंगा घाट से निकलकर दुनिया के कई देशों में बिखरती रही। उनकी शहनाई अफ़ग़ानिस्तान, यूरोप, ईरान, इराक, कनाडा, पश्चिम अफ़्रीका, अमेरिका, भूतपूर्व सोवियत संघ, जापान, हांगकांग और विश्व भर की लगभग सभी राजधानियों में गूंजती रही। उनकी शहनाई की गूंज से फिल्?मी दुनिया भी अछूती नहीं रही। उन्होंने कन्नड़ फ़िल्म ?सन्नादी अपन्ना?, हिंदी फ़िल्म ?गूंज उठी शहनाई?और सत्यजीत रे की फ़िल्म ?जलसाघर? के लिए शहनाई की धुनें छेड़ी। आखिरी बार उन्होंने आशुतोष गोवारिकर की हिन्दी फ़िल्म?स्वदेश? के गीत?ये जो देश है तेरा?में शहनाई की मधुर तान बिखेरी।
बहरहाल बिस्मिल्लाह ने शहनाई वादन से दुनिया में भारत का डंका बजाया, तमाम अवार्ड जीते, मगर उनका परिवार आज तंगहाली में गुजर-बसर कर रहा है। पोते नासिर के मुताबिक पैसे न होने पर घर की आर्थिक हालत खराब हो चली है। यहां तक कि दादा उस्ताद के जीते हुए अवार्डों की देखभाल भी नहीं हो पा रही है।
90 वर्ष की आयु में बिस्मिल्लाह खां को दिल का दौरा पड़ने की वजह से 21 अगस्त 2006 को वह दुनिया से रुखसत हो गए।