भास्कराचार्य का जन्म 12वीं सदी में कर्नाटक के बीजापुर नामक स्थान में हुआ था । उनके पिता महेश्वर भट्?ट को गणित, वेद तथा अन्य शास्त्रों का अच्छा ज्ञान था। भास्कराचार्य ने सिद्धान्त शिरोमणि" एक विशाल ग्रन्थ लिखा है जिसके चार भाग हैं (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) गोलाध्याय और (4) ग्रह गणिताध्याय।
लीलावती भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। उन्होने अपनी पुत्री के नाम पर ही इस ग्रंथ का नाम रखा था। यह पुस्तक पिता-पुत्री संवाद के रूप में लिखी गयी है। लीलावती में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है। हालांकि भास्कराचार्य के पुत्र लक्ष्मीधर को ज्योतिष व गणित में अच्छा ज्ञान प्राप्त था।
भास्कराचार्य ने विज्ञान से जुड़ी कई कई खोज किए है।इनमें ग्रहों के मध्य व यथार्थ गतियां काल, दिशा, स्थान, ग्रहों के उदय, सूर्य एवं चन्द्रग्रह, सूर्य की गति, ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण व शक्ति संबंधित कई खोज शामिल है। वैसे तो ये बात हर कोई जानता है कि गुरुत्वाकर्षण की खोज करने वाले न्यूटन है लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते है कि संसार के सामने गुरुतवाकर्षण को लाने वाले सर्वप्रथम वैज्ञानिक भास्कराचार्य थे हालांकि उन्हे इसका श्रेय नहीं मिल सका।
गणित में भी भारकराचार्य का मुख्य योगदान है। उन्होने सारणियां, संख्या प्रणाली भिन्न, त्रैराशिक, श्रेणी, क्षेत्रमितीय, अनिवार्य समीकरण जोड़-घटाव, गुणा-भाग, अव्यक्त संख्या व सारिणी, घन, क्षेत्रफल के साथ-साथ शून्य की प्रकृति का विस्तृत ज्ञान दिया । इनहोने पायी का गान 3.14166 निकाला, जो वास्तविक मान के बहुत करीब है । भास्कराचार्य द्वारा खोजी गयी तमाम विधियां आज भी बीजगणित की पाठ्?यपुस्सकों में मिलती हैं । वैज्ञानिक भास्कराचार्य का निधन 65 वर्ष की आयु में हो गया था।