क्या है जज़िया कर-
इस्लामी शासन काल में जज़िया एक ऐसा कर था जिसे प्रारंभिक इस्लामी शासक अपनी ग़ैर मुस्लिम प्रजा से वसूल किया करते थे। जज़िया को जिज़या भी कहा जाता था। इस कर की दर व उसकी वसूली हर प्रांत में अलग-अलग थी और वे स्थानीय इस्लाम-पूर्व के रिवाज़ों से अत्यधिक प्रभावित थे। सिद्धांततः कर के धन का इस्तेमाल दान व तनख्वाह व पेंशन बांटने के लिए होता था। वास्तव में जज़िया से एकत्र किए गए राजस्व को शासक के निजी कोष में जमा किया जाता था। आमतौर पर ऑटोमन शासक जज़िया से एकत्र धन का इस्तेमाल अपने सैन्य ख़र्चों के लिए करते थे।
आपको बता दें कि इस्लामी क़ानून में ग़ैर मुसलमान प्रजा को दो श्रेणियों में विभक्त किया गया था:-
? मूर्तिपूजक
? ज़िम्मी ('संरक्षित लोग' या 'ग्रंथों के लोग', यानि वे लोग, जिनके धार्मिक विश्वासों का आधार पवित्र ग्रंथ होते हैं, जैसे ईसाई, यहूदी और पारसी)।
जज़िया कर की शुरुआत मुहम्मद बिन कासीम ने की थी। फिरोजशाह तुगलक ने इस कर को ब्राह्मणों पर लगाना शुरु किया था।
अखबर ने जज़िया कर किया था समाप्त-
अकबर ने जज़िया कर को सन 1564 में समाप्त कर दिया था। अकबर का पूरा नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था। अखबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 ई. में अमरकोट में हुआ।अकबर एक कुशल प्रशासक था । उसने प्रशासन के क्षेत्र में नवीन सुधारों के द्वारा एक संगठित राज्य प्रबन्ध की बुनियाद स्थापित की । उसने प्रशासकीय ढांचे को नीवन स्वरूप प्रदान किया ।
अकबर की गिनती ससांर के प्रमुख शक्तिशाली तथा महानतम सम्राटों में की जाती है, वह वीर सैनिक, महान् सेनानायक, कुशल प्रशासक, कूटनीतिज्ञ, प्रजाहितैषी तथा मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था । उसका महानतम् कार्य हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति का सम्मिश्रण करके साम्राज्य में राजनैतिक एकता की स्थापना करना था । वह मानव चरित्र तथा योग्यता का अच्छा जानकार था, उसने राजपूतों की योग्यता को परखकर उसका उपयोग राष्ट्रहित में करके साम्राज्य की सफलतओं पर चार चांद लगा दिया । उसने प्रशासन, सुधारों और नियमों के द्वारा मुगल शासन को सुदृढ़ कर दिया ।