अयोध्या के जिस राम मंदिर के साथ संसार भर के सौ करोड़ से ज्यादा लोगों की आस्था जुड़ी हुई है, उस राम मंदिर का निर्माण खांडे की धार साबित हो रहा है क्यों? आखिर इसमें ऐसा क्या पेंच है कि केंद्र में राम भक्त सरकार के होते, उत्तर प्रदेश में एक रामभक्त योगी के मुख्यमंत्री रहते, देश के एक से बढ़कर एक मुर्धण्य इंजीनियरों, आर्किटेक्टों के दिन-रात राम मंदिर निर्माण से जुड़े रहने, देश की सबसे प्रसिद्ध टाटा और एल एण्ड टी कंपनी के इंजीनियरों द्वारा मंदिर की डिजाईन प्रस्तुत करने, देश के एक से बढ़कर एक नामी-दामी ज्योतिषियों द्वारा सुझाये गये शुभ मुहूर्त पर काम प्रारंभ करने, देश के एक से बढ़कर एक प्रज्ञावान (?) वास्तुविदों की सलाह लेने तथा राम मंदिर की आधारशिला के दिन तथाकथित अति शक्तिशाली ग्रह स्थिति होने के बावजूद राम मंदिर का निर्माण क्यों दूर की कौड़ी साबित हो रहा है? देश की सर्वोच्च अदालत ने लगभग 500 वर्ष पुरानी राम जन्मभूमि स्थित जमीन के मालिकाना हक के मामले की सुनवाई करते हुए गत 9 नवंबर 2019 को अपना फैसला सुनाया था। सुप्रीम फैसले को डेढ़ साल व्यतीत होने के बाद भी श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट मंदिर के निर्माण की तकनीकी उलझनों को ही सुलझा नहीं पा रहा है क्यों?
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 15 अक्टूबर 2020 से राम मंदिर की बुनियाद के लिए प्रस्तावित 1200 पिलरों का निर्माण कार्य शुरू करने तथा जून-2021 तक पूरा करने का ऐलान किया था। लेकिन जून-2021 में पूरे होने वाले 1200 खंभों का अप्रैल-2021 तक तो निर्माण कार्य ही शुरू नहीं हो पाया है। पिलरों का निर्माण तो दूर सारे वास्तुविदों, ज्योतिषियों, इंजीनियरों, आर्किटेक्टों, संतों की सलाह लेकर बनाई गई राममंदिर की योजना को उस वक्त पलीता लग गया, जब जन्मभूमि के गर्भगृह के नीचे 17 मीटर तक जलाशय और उसके नीचे बालू होने की वजह से राम मंदिर निर्माण के लिए बनाये गये तीन पिलर जमीन में धंस गये। लिहाजा ट्रस्ट के सदस्यों और मंदिर निर्माण से जुड़ी एलएण्डटी व टाटा कंसल्टेंसी के इंजीनियरों ने खंभों की पाइलिंग के काम को असफल करार दिया तथा अब पूरी योजना को रद्द कर नये सिरे से योजना बनाई जा रही है। अनुमान किया गया है कि पहले राममंदिर के निर्माण पर जहां 300 करोड़ रुपये खर्च होने थे, वहीं नई योजना पर 1200 करोड़ रुपयों की लागत आयेगी।
सवाल यह उठता है कि देश के मुर्धण्य धर्मगुरुओं, ज्योतिषियों, वास्तुविदों, टाटा और एल एण्ड टी सरीखी कंपनियों के इंजीनियरों, आर्किटेक्टों की सलाह से प्रस्तुत की गई राम मंदिर निर्माण की योजना आखिर फ्लॉप क्यों हो गयी? क्यों राम जन्मभूमि परिसर का मालिकाना हक मिलने के डेढ़ साल गुजर जाने के बावजूद आज तक राममंदिर का निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ पा रहा है? इसका मुख्य कारण है वास्तु। राम जन्मभूमि निर्माण ट्रस्ट द्वारा प्रस्तावित मंदिर के नक्शे को सार्वजनिक करने के बाद मैंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा राम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष को पत्र लिखकर प्रस्तावित राम मंदिर में गंभीर वास्तु दोष होने का जिक्र करते हुए इस नक्शे के हिसाब से मंदिर का निर्माण कार्य आगे बढ़ाने से मंदिर निर्माण में बाधाएं आने के साथ ही मंदिर निर्माण के बाद भी समस्याएं पैदा होने का उल्लेख करते हुए वास्तुसम्मत राम मंदिर का निर्माण करने का आह्वान किया था। लेकिन किसी ने भी इस चेतावनी पर गौर नहीं किया और इसी का परिणाम है कि राम मंदिर निर्माण का कार्य पग-पग पर बाधाग्रस्त हो रहा है।
अयोध्या में राम जन्मभूमि वास्तु दोषों के चलते सदियों से विपत्तियों, विघटन, विरोधों, विघ्नों, विध्वंसों का केंद्र रही है। इस मंदिर के निर्माण की कई योजनाएँ बनीं, काफी प्रयास हुए, काफी लोगों ने अपने प्राणों तक का बलिदान कर दिया, लेकिन आखिर सब टांय-टांय फिस्स हो गया। सो तो होना ही था, क्योंकि राम जन्मभूमि क्षेत्र में मौजूद भयंकर वास्तु दोष बेवजह विवाद, दंगे-फसाद, मौत के ताडंव आदि अनहोनी घटनाओं का सृजन करता है। वास्तु का नियम है कि किसी भी प्रकार का निर्माण चौकोर या आयताकार होना चाहिए, ताकि चारों दिशाओं का लाभ प्राप्त किया जा सके। किसी भी दिशा को काटकर किया गया निर्माण अनपेक्षित समस्याएं पैदा करता है। विशेषकर किसी भी भूखंड का उत्तर-पूर्वी का कोना कटा हो तो उसे दुनिया की कोई भी ताकत तबाह होने से नहीं बचा सकती। राम जन्मभूमि परिसर की उत्तर-पूर्व दिशा की भूमि राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अधिकार में नहीं है। वास्तु शास्त्र में एक वास्तु पुरुष की कल्पना की गई है, जिनका सिर उत्तर-पूर्व में तथा पैर दक्षिण-पश्चिम में होते हैं। जब किसी उत्तर-पूर्व कटे हुए प्लॉट पर मकान का निर्माण किया जाता है तो वह वास्तु पुरुष का गला काटने सरीखा खतरनाक होता है। जिस प्रकार गला कटने के बाद मनुष्य प्राण शून्य हो जाता है, उसी प्रकार उत्तर-पूर्व क्षेत्र को काटकर किया गया निर्माण वास्तु पुरुष का गला काटकर उस भूखंड को प्राणशून्य करने सरीखा खतरनाक होता है।
पाठकों को याद होगा, जब भारत सरकार ने सन् 2010 में रुपये का नया सिंबल जारी किया था। मैंने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर रुपये के सिंबल में वास्तु दोष की वजह से देश की अर्थनीति को नुकशान पहुँचने तथा रुपये का अवमूल्यन होने की चेतावनी देते हुए इसे वास्तु सम्मत बनाने का आह्वान किया था। सरकार द्वारा मामले की अनदेखी करने का परिणाम यह हुआ कि सिर्फ 2 सालों में रुपया 44 रुपये प्रति डॉलर से गिरकर रेकॉर्ड 76 रुपये प्रति डॉलर तक पहुँच गया तथा देश की जीडीपी 8.5 प्रतिशत से 3 प्रतिशत तक गिर गई। देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद यह -8 प्रतिशत तक गिर गई है। रुपये का सिंबल वास्तु दोष पूर्ण होने की वजह से विगत 10 सालों से देश भयंकर आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। राम जन्मभूमि परिसर का उत्तर-पूर्व का कोना कटा होने तथा दक्षिण-पश्चिम में तीखी ढलान होने के कारण ही अयोध्या में राम मंदिर का मामला सदियों से विवादों के घेरे में रहा है तथा आज तक सपनों का राम मंदिर हकीकत में तब्दील नहीं हो पाया है। इसके साथ ही प्रस्तावित राम मंदिर के नक्शे में भी उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर, दक्षिण आदि कई दिशाओं के कटने से भयंकर वास्तुदोष होने की वजह से राम मंदिर के निर्माण में अनपेक्षित बाधाएं खड़ी हो रही हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि रुपये के सिंबल में उत्तर-पूर्व का कोना काट देने से अगर एक देश की अर्थनीति डांवाडोल हो सकती है तो फिर कई दिशाओं को काटकर बनाये जा रहे मंदिर का निर्माण कितना खतरनाक हो सकता है? हमारे देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र इसी भांति दिशाओं को काटकर गृह निर्माण करने की प्रवृत्ति की वजह से सदियों से मुगलों व चीन के आक्रमण, अंग्रेजों की गुलामी, उग्रवाद, अशांति, अभाव, नकारात्मक भावनाओं से जार-जार होता रहा है। अब बंगलादेशियों की घुसपैठ के कारण स्थानीय समुदायों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। यहाँ के लोग सदियों से अंग्रेजी वर्णमाला के L, T, U आदि वर्णों के आकार में घरों का निर्माण करते आये हैं, जिसकी वजह से न सिर्फ उनका जीवन कठिनाईयों से भरा रहता है, अपितु वे उन्नति भी नहीं कर पाते।
मानव जाति की यह विडंबना है कि मनुष्य धरती पर रहता है, धरती की छाती से निकला पानी पीकर, धरती की छाती पर उगा अन्न खाकर, धरती की छाती पर उगे पेड़-पौधों से ऑक्सीजन प्राप्त कर जीवन यापन करता है, लेकिन धरती के गुण गाने के बजाय, धरती का अहसान मानने के बजाय वह शनि ग्रह-मंगल ग्रह के सिस्टम से चलता है, तथाकथित ऊपरवाले अर्थात्त काल्पनिक भगवान, अल्ला, गॉड का अहसान मानता है। मानव जाति की यह बड़ी ट्रेजिडी है कि तथाकथित धर्मगुरु रुपी मुट्ठी भर धुरंधर लोग भांति-भांति के धर्मों का सृजन कर दुनिया के अधिकांश लोगों पर शासन तथा युगों से उनका शोषण करते चले आ रहे हैं। दुनिया के सबसे निकम्मे तथा दो-चार क्लास पढ़े अशिक्षित-अल्पशिक्षित व्यक्ति भी जब धर्मगुरु का चोला पहन लेते हैं तो देश के प्रधानमंत्री, मंत्री, राजनैतिक नेता, अफसर, शिक्षाविद उनके चरणों में लोट-पोट कर गर्व महसूस करते हैं, देश की धर्मांध जनता उनका अनुशरण कर खुद को गौरवान्वित महसूस करती है।
हमारी धरती का सिस्टम इतना सुंदर व चमत्कारी है कि अगर मनुष्य इसके सिस्टम से चले तो फिर दुनिया में एक भी दरिद्र न रहे, कोई भी भूखा न रहे, कोई भी रोगी न रहे, जीवन में कोई आपत्ति-विपत्ति भी न हो। लेकिन धुरंधर मनुष्य खुद को धरती माँ की संतान मानने के बजाय अल्ला, ईश्वर, गॉड की संतान मानता है और अपना समूचा जीवन अल्ला, ईश्वर, गॉड सरीखी उन काल्पनिक शक्तियों की पूजा-अर्चना, नमाज, सेवा में व्यतीत करता है, जिनके अस्तित्व का कहीं कोई ठौर-ठिकाना नहीं है और यही उसके जीवन की सारी मुश्किलात का मुख्य कारण है। ये तथाकथित धर्मगुरु कतई नहीं चाहते कि दुनिया में शांति स्थापित हो, लोगों का जीवन सुधरे, क्योंकि लोग जब अशांति, अभाव, समस्याओं से मुक्त हो जायेंगे तो कोई क्यों किसी धर्मगुरु के पास जायेगा, क्यों उनकी मनमानी सहन करेगा, क्यों उनको मुँहमांगा चढ़ावा देगा? यही वजह है कि युगों से मानव जाति को धरती के आशीर्वाद से वंचित कर उसे समस्याओं के भंवर में उलझा दिया जाता रहा है, ताकि लोग उनकी सेवा-सुश्रुषा करते रहें, उनके चरणों में लोट-पोट होते रहें।
वास्तु नियमों के उल्लंघन का परिणाम कितना भयंकर हो सकता है, इसकी जानकारी लेनी हो तो आप उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के इतिहास का अध्ययन कर सकते हैं। इस भवन में भयंकर वास्तु दोष होने की वजह से कोई भी मुख्यमंत्री अपने पद पर साल-दो साल से ज्यादा नहीं टिक पाता है। हाल ही में त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद से हाथ धोना पड़ा। इससे पूर्व भी प्रशासनिक व राजनीतिक हलकों में 'मनहूस' माने जाने वाले इस बंगले में रहने वाले तीन मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किये बिना ही मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा चुके हैं। उत्तराखंड में बीजेपी की भारी जीत के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत 18 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन, वे भी दो साल तक मुख्यमंत्री के अभिशप्त बंगले में शिफ्ट होने का साहस नहीं जुटा सके। वैसे तो वे शुरू से इसके 'शापित' होने की अफवाहों को खारिज कर रहे थे, लेकिन आखिरकार कई ज्योतिषियों, वास्तु शास्त्रियों और पंडितों से सलाह-मशविरा कर उनके बताये अनुसार कई फेरबदल करवाने के साथ ही उन्होंने सारे विधि-विधान, हवन-पूजन करवाये और 23 अप्रैल, 2019 को नवरात्र के दूसरे दिन शुभ मुहूर्त देखकर गृहप्रवेश किया था, लेकिन फिर भी उनकी कुर्सी नहीं बच पाई और उन्हें गत 9 मार्च को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इससे पूर्व बी. सी. खंडूड़ी, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा का भी यही हश्र हुआ था। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश से अलग होकर सिर्फ 20 साल पहले गठित उत्तराखंड में अब तक 9 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं। इनमें से सिर्फ एक मुख्यमंत्री ही अपना 5 सालों का कार्यकाल पूरा कर पाये हैं। सोचने की बात है कि अगर हर 2 साल में किसी राज्य का मुख्यमंत्री बदलता है तो उस राज्य के विकास कार्यों पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता होगा?
मेघालय राज्य के गठन के बाद असम की राजधानी को शिलांग से दिसपुर स्थानांतरित किया गया था। दिसपुर में मुख्यमंत्री का जो सरकारी आवास बनाया गया था, उसमें वास्तु दोष होने की वजह से उस सरकारी आवास में रहने वाला एक भी मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया और अब कोई भी मुख्यमंत्री इस सरकारी आवास में नहीं रहना चाहता। असम गण परिषद् के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब इसी आवास में रहते थे। उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनकी सरकार को भंग कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। वे दूसरी बार जब मुख्यमंत्री बने तो मुख्यमंत्री के सरकारी आवास में रहने के बजाय उन्होंने विधायक आवास से ही कार्यनिर्वाह करना उचित समझा और उसी में रहते हुए अपना 5 सालों का कार्यकाल पूरा कर लिया। उनके बाद मुख्यमंत्री बने तरुण गोगोई ने मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के बजाय सरकारी गेस्ट हाऊस में रहना पसंद किया और एक के बाद एक तीन कार्यकाल पूरे कर लिये। वर्तमान मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल भी मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के बजाय सरकारी गेस्ट हाऊस में ही रह रहे हैं और उनका भी 5 सालों का कार्यकाल अमूनन पूरा होने वाला है।
अरुणाचल के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास में 3 मुख्यमंत्रियों की अकाल मृत्यु के कारण समूचे अरुणाचल में इस बंगले को भूतबंगले के रूप में माना जाता है। वर्तमान मुख्यमंत्री पेमा खांडू इस बंगले में रहने के बजाय अपने आवास से ही मुख्यमंत्री का काम-काज चला रहे हैं। दोर्जी खांडू ने मुख्यमंत्री के नये सरकारी बंगले का निर्माण करवाकर सर्वप्रथम उसमें प्रवेश किया था और चंद महीनों बाद ही वे एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए थे। उनके बाद जारबोम गामलिन मुख्यमंत्री बने, जिनकी 6 महीनों बाद ही हृदयरोग से मृत्यु हो गई। कालिखो पुल ने भी 5 महीनों तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्यनिर्वाह करने के बाद मुख्यमंत्री के सरकारी आवास में ही आत्महत्या कर ली थी। वर्तमान मुख्यमंत्री पेमा खाण्डू ने इस बंगले में रहने के बजाय इसे सरकारी गेस्ट हाऊस घोषित कर दिया है।
उपरोक्त घटनाओं से यह बात पूरी तरह साफ हो जाती है कि मनुष्य के जीवन में वास्तु का अकल्पनीय प्रभाव होता है। समूचे विश्व में वास्तु की बढ़ती जनप्रियता तथा वास्तु के प्रति लोगों के बढ़ते विश्वास से भी यही बात प्रमाणित होती है। वास्तु की अनदेखी करना खुद को विपदाओं के भंवर में धकेलना है। ऐसे में वास्तु के नियमों का उल्लंघन कर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना कितना उचित है? आपके मन में यह जिज्ञासा पैदा हो सकती है कि जबकि राम मंदिर का नक्शा बनाने वालों में देश के मुर्धण्य ज्योतिषी और वास्तु विशेषज्ञ सम्मिलित हैं तो फिर उसमें वास्तु दोष का सवाल कहाँ से पैदा होता है? पाठकों की जिज्ञासा शांत करने के लिए मैं दो घटनाओं का जिक्र करना उचित समझता हूँ। नबाम टुकी जब अरुणाचल के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने मुझे अरुणाचल के मुख्यमंत्री के सरकारी बंगले का वास्तु निरीक्षण करने हेतु इटानगर बुलवाया था। मैंने बंगले का निरीक्षण कर उन्हें कुछ फेर-बदल करने की सलाह दी थी। उसी दौरान मुझे मुख्यमंत्री आवास के एक अधिकारी ने बताया था कि दोर्जी खांडू जब अरुणाचल के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने दिल्ली से किसी वास्तु विशेषज्ञ को बुलवाया था। उक्त वास्तु विशेषज्ञ ने बंगले में माप-जोख कर 40 पिरामिड तथा कुछ यंत्र जमीन में गड़वा कर 20 लाख रुपयों की मोटी फीस वसूली थी। मजे की बात यह है कि उक्त वास्तु विशेषज्ञ (?) द्वारा वास्तु सुधार करने के चंद महीनों बाद ही दोर्जी खांडू एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गये थे। ऐसे ठगों की वजह से ही आज भारत की अनमोल प्राचीन विद्याएं वास्तु, ज्योतिष, योग, आयुर्वेद आदि बदनाम हो रही हैं।
मैंने रुपये के सिंबल में वास्तु दोष का जिक्र करते हुए सन्-2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखा था। इंडियन एक्सप्रेस, वाशिगंटन पोस्ट, डॉन आदि सहित देश-विदेश के सैकड़ों अखबारों में इस खबर के प्रकाशित होने के बाद 'बंगलौर मिरर' की एक पत्रकार ने गुवाहाटी के वास्तु विशेषज्ञ द्वारा रुपये के सिंबल में वास्तु दोष की वजह से रुपये के अवमूल्यन तथा देश की जीडीपी गिरने की भविष्यवाणी करने का जिक्र करते हुए देश के नामी ज्योतिषी बेजान दारूवाला से बात की तो उन्होंने कहा था कि फिलहाल देश की ग्रह दशा ठीक नहीं चल रही है। 6 महीनों बाद सन् 2011 से ग्रह दशा बदलेगी और उसके बाद हमारा देश विश्व की सबसे टॉप आर्थिक शक्तियों में से एक होगा। वो सन् 2011 की बात थी और आज सन् 2021 चल रहा है। बेजान दारूवाला की भविष्यवाणी के अनुसार देश के विश्व की सबसे टॉप अर्थनीति बनने का आज 10 सालों बाद भी देश को इंतजार है। 6 महीनों बाद विश्व की टॉप अर्थनीति बनने वाला हिंदुस्तान आज माइनस जीडीपी में चल रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि आज देश में हर क्षेत्र में फर्जीवाड़ा और आम जन की लूट-पाट चल रही है। विशेषकर ज्योतिष और वास्तु के नाम पर लोगों को जमकर लूटा-खसोटा जा रहा है। ऐसे ही फर्जी लोग हमारे देश की महान विद्याओं को बदनाम करने में जुटे हुए हैं। ऐसे लोग जब राम मंदिर का नक्शा बनायेगें तो फिर उस मंदिर के निर्माण में अड़चनें आना स्वाभाविक ही है। इन तथाकथित वास्तु, ज्योतिष विशेषज्ञों से कोई पूछे कि आपकी तथाकथित अति शक्तिशाली ग्रह स्थिति, वास्तु सम्मत नक्शा बनाने के बाद क्यों अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में बारंबार बाधाएं आ रही हैं? क्यों आपके बनाये नक्शे के अनुसार मंदिर के निर्माण की योजना पूरी तरह फ्लॉप हो गई? बहाने लाख बनाए जा सकते हैं, लेकिन इतना तो तय है कि इन तथाकथित ज्योतिषियों और वास्तु विशेषज्ञों की सलाह से बनाई गई राममंदिर की योजना पूरी तरह फ्लॉप हो चुकी है। इन फर्जी ज्योतिषियों व वास्तु विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार अगर राम मंदिर का निर्माण करने की कोशिश की गई तो मंदिर के निर्माण में इसी तरह बाधाएं आती रहेंगी और मंदिर निर्माण के बाद भी समस्याएं पैदा होती रहेंगी। अभी भी वक्त है, राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट को दिशाओं को काटकर मंदिर निर्माण की योजना को रद्द कर चारों दिशाओं को बरकरार रखते हुए राम मंदिर का निर्माण करना चाहिए। विगत 25 सालों में पूर्वोत्तर के 16,000 परिवारों को नि:शुल्क वास्तु सलाह देकर प्राप्त प्रेक्टिकल अनुभवों के आधार पर मैंने ये सारी बातें लिखी हैं। भारत सरकार द्वारा रुपये के सिंबल का वास्तु दोष दुरुस्त न करने का भयंकर परिणाम देश आज तक भुगत ही रहा है, वास्तु दोष युक्त राममंदिर के निर्माण से हिंदू समाज का भी यही हश्र होना तय है।
- राजकुमार झाँझरी
(अध्यक्ष, रि-बिल्ड नॉर्थ ईस्ट, गुवाहाटी)
लेखक देश को दरिद्रता, भूखमरी, रोग, धर्मांधता, उग्रवाद, तनाव, अशांतिमुक्त करने के मिशन के तहत अब तक 16,000 परिवारों को घर-घर जाकर नि:शुल्क वास्तु सलाह दे चुके हैं। मोबाईल नंबर : 70025 96500
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