मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी के मामले में घिरे शराब व्यवसायी विजय माल्या के प्रत्यर्पण मामले की सुनवाई सोमवार को फिर शुरू हुई। इस मामले को लेकर उनके वकीलों ने भारत की न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए है। लंदन के वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में हुई सुनवाई के दौरान वकील क्लेयर मोंटगोमरी ने सुनवाई के दौरान केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर सवालिया निशान खड़े किए है। इस मामले में वकील ने डॉ. लाउ को अपनी राय देने के लिए पेश किया था। बता दे कि डॉ. लाउ दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ हैं।
इस मामले में राय देते वक्त लाउ ने कहा, 'मैं भारत के उच्चतम न्यायालय का काफी सम्मान करता हूं, लेकिन कभी कभार खास पैटर्न्स को लेकर कुछ दुविधाएं भी हैं। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि यह (सुप्रीम कोर्ट) एक भ्रष्ट संस्था है। कभी-कभी यह सरकार के पक्ष में फैसला देती है, खासकर जब जज रिटायर होने की कगार पर होते हैं और (रिटायरमेंट के बाद) किसी सरकारी पद की चाहत रखते हैं। यह न्यायिक फैसलों पर सरकार को प्रभाव की ओर इशारा करता है जो न्यायिक स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन है।
उधर माल्या के प्रत्यर्पण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विदेश मंत्रालय से 15 दिसंबर तक जवाब मांगा। कोर्ट ने इशारा किया कि अगर मंत्रालय उनका आदेश नहीं मानेगा तो कोर्ट मंत्रालय को समन भी कर सकती है।
गौरतलब है कि माल्या पर करीब 9,000 करोड़ रुपये का कर्ज, धोखाधड़ी, व देश छोड़ कर भागने का मामला दर्ज है। वहीं इस मामले में माल्या के वकील इस बात को साबित करने का प्रयास कर रहे हैं कि एयरलाइन का लोन नहीं चुका पाने का मामला कारोबार की विफलता का परिणाम है ना कि यह कोई बेईमानी अथवा धोखाधड़ा का मामला है।