IPC की धारा 377 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट आज सुना सकता है फैसला

Aazad Staff

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धारा 377 को खत्म करने का मुद्दा सबसे पहले नाज फाउंडेशन ने 2001 में उठाया था। 2017 तक दुनिया के 25 देशों में समलैंगिकों के बीच यौन संबंध को क़ानूनी मान्यता मिल चुकी है।

दो समलैंगिक व्यस्क लोगों का संबंध बनाना अपराध है या नहीं, इसे लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकती है। कोर्ट ने जुलाई माह में इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक समलैंगिकता को अपराध के दायरे में रखा गया है।

2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था। इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और फिलहाल पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित है। पीठ ने सभी पक्षकारों को अपने-अपने दावों के समर्थन में 20 जुलाई तक लिखित दलीलें पेश करने को कहा था। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा 1 अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं, ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इस मामले में आज फैसला सुनाया जा सकता है।

क्या है धारा 377 ?.

भारतीय दंड सहिनता की धारा 377 जिसे हम आईपीसी की धारा के नाम से जानते है। ये एक विवादित धारा है जो ब्रटिश काल में बनाई गई थी। इस धारा के अंतरगत अगर कोई भी दो समलैंगिक व्यक्ति अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाता है तो उसे अपराध की क्षेणी में रखा जाता है। उस व्यक्ति को उम्रक़ैद या जुर्माने के साथ दस साल तक की क़ैद हो सकती है।

इस धारा 377 को खत्म करने का मुद्दा सबसे पहले नाज फाउंडेशन ने 2001 में उठाया था। जिसके बाद इस धारा को 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था। इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और फिलहाल पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित है।

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