सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) के चलन को दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केरल के एक संगठन की याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह हस्तक्षेप नहीं करना चाहेंगे।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के कुछ घंटों बाद, पिछले साल १९ सितंबर को ?मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों की सुरक्षा) अध्यादेश? पहली बार अधिसूचित किया गया था। एक बार में तलाक तलाक तलाक कह कर विवाह विच्छेद करने की यह प्रक्रिया तलाक ए बिद्दत कहलाती है।
कोई भी मुस्लिम पुरुष एक बार में तीन बार तलाक कह कर तलाक दे सकता है। अध्यादेश में इसी प्रक्रिया को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया था। एक साल से भी कम समय में इस अध्यादेश को २१ फरवरी को तीसरी बार जारी किया गया।