29 अगस्त 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद का 113वां जन्मदिन है. भारत के महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद ने भारत को 3 ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलवाया था. उनकी गोल करने की अद्भुत क्षमताओं से विपक्षी टीमें भी अक्सर हैरान रह जाती थीं. उनके बारे में यहां तक कहा जाता था कि गेंद उनकी हॉकी से चिपक जाती है. उनके सम्मान में ही 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन राष्ट्रपति, राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार से खिलाड़ियों को सम्मानित करते हैं.
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हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का खेल जिसने भी देखा वह उनका मुरीद हो गया. ध्यानचंद को चाहने वाले उन्हें 'दद्दा' भी कहकर पुकारा करते थे. दद्दा के खेल का जादू ऐसा था जिसने जर्मन तानाशाह हिटलर तक को अपना दीवाना बना दिया था. मेजर का खेल देखने बाद हिटलर ने उनको जर्मन सेना में पद ऑफर किया था ,जिसे इस 'भारतरत्न' ने ठुकरा दिया था. मेजर साहब ने हिटलर से बड़ी ही विनम्रता से कहा, 'मैंने भारत का नमक खाया है. मैं भारतीय हूं और भारत के लिए ही खेलूंगा.' उस समय ध्यानचंद लांस नायक थे.
ध्यानचंद ने 16 साल की उम्र में भारतीय सेना ज्वाइन कर ली थी. इसी समय उन्होंने हॉकी खेलना भी शुरू किया. ध्यानचंद ब्रिटिश आर्मी में लांस नायक थे. उनके बेहतरीन खेल प्रदर्शन को देखते हुए ब्रिटिश गवर्मेंट ने उन्हें मेजर बनाया था.23 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में पहली बार हिस्सा लिया. यहां चार मैचों में भारतीय टीम ने 23 गोल किए. ध्यानचंद 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल (14) करने वाले खिलाड़ी थे. भारत की जीत पर एर रिपोर्ट में कहा गया, यह हॉकी का खेल नहीं बल्कि एक जादू है. ध्यान चंद हॉकी के जादूगर हैं.
1932 के ओलंपिक में भारत ने अमेरिका को 24-1 से, जापान को 11-1 से हराया. ध्यान चंद ने 12 गोल किए जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 35 में से 13 गोल किए. इसके बाद दोनों भाइयों को हॉकी ट्वीन्स कहा गया.ध्यानचंद ने भारत को अनेक यादगार जीत दिलवाईं, लेकिन वह अपना बेस्ट मैच 1933 में बेईघटन कप फाइनल में कोलकाता कस्टम्स और झांसी हीरोज के बीच हुए मैच को बताते थे.