यह त्?योहार हमें हर साल याद दिलाता है कि हम बुराई रूपी रावण का नाश करके ही जीवन को बेहतर बना सकते हैं। वैसे तो रावण दहन से कई पौराणिक कथाए जुड़ी हुई है -
एक कथा के मुताबिक महिषासुर नाम का एक बड़ा शक्तिशाली राक्षस था। ब्रह्मा जी को खुश कर महिषासुर ने कठोर तपस्या कर अमर होने का वरदान मांगा। इस पर ब्रह्माजी ने उससे कहा कि जो इस संसार में पैदा हुआ है उसकी मृत्?यु निश्चित है इसलिए जीवन और मृत्यु को छोड़कर जो चाहे मांग सकते हो। ब्रह्मा की बातें सुनकर महिषासुर ने कहा कि फिर उसे ऐसा वरदान चाहिए कि उसकी मृत्?यु देवता और मनुष्?य के बजाए किसी स्?त्री के हाथों हो। ब्रह्माजी से ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया।
महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की। इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया। शस्?त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया। इसलिए इस दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। महिषासुर का नाश करने की वजह से दुर्गा मां महिषासुरमर्दिनी नाम से भी जानी जाती है।
हिंदू शास्त्रों में रावण दहन को लेकर ये कथा है कि श्री राम ने लगातार नौ दिनों तक लंका में रहकर रावण से युद्ध किया। फिर 10वें दिन उन्?होंने रावण की नाभ?ी में तीर मारकर उसका वध कर दिया था। कहते हैं कि भगवान श्री राम ने मां दूर्गा की पूजा कर शक्ति का आह्वान किया था। श्री राम की परीक्षा लेते हुए मां दुर्गा ने पूजा के लिए रखे गए कमल के फूलों में से एक फूल को गायब कर दिया। राम को कमल नयन कहा जाता था इसलिए उन्होंने अपना एक नेत्र मां को अर्पण करने का निर्णय लिया। जैसे ही वह अपना नेत्र निकालने लगे देवी प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हुईं और विजयी होने का वरदान दिया। फिर दशमी के दिन श्री राम ने रावण का वध कर दिया।