गूगल के डूडल में नजर आए मिर्जा ग़ालिब

Aazad Staff

Nation

आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्दू ग़ज़लों के लिए याद किया जाता है।

मिर्जा ग़ालिब के 220वीं जयंती पर गूगल ने आज उनको अपना डूडल समर्पित किया है। डूडल में मिर्जा गालिब हाथ में पेन और पेपर के साथ नजर आ रहे हैं। वहीं बैकग्राउंड में मुगलकालीन इमारत है। मिर्जा ग़ालिब का पूरा नाम मिर्जा असल-उल्लाह बेग खां था। उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 को मुगल शासक बहादुर शाह के शासनकाल के दौरान आगरा के एक सैन्य परिवार में हुआ था। उन्होंने फारसी, उर्दू और अरबी भाषा की पढ़ाई की थी।

मिर्जा गालिब मुगल शासक बहादुर शाह जफर के दरबार में कवि थे। उन्हें दरबार-ए-मुल्क, नज्म-उद दौउ्ल्लाह के पदवी से नवाजा था। बता दे कि आज भी शाहरों की पहली पसंद मिर्जा गालिब है। इनकी शाहरी आज भी लोगों को कायल कर देती है। गालिब पर कई किताबें है जिसमें दीवान-ए-गालिब, मैखाना-ए-आरजू, काते बुरहान शामिल है।

बता दें कि 1850 में शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय ने मिर्ज़ा गालिब को दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के खिताब से नवाज़ा।

गालिब के कई शेर मशहूर जिनमें-
हम वहां हैं जहां से हम को भी कुछ हमारी ख़बर नहीं आती मरते हैं आरज़ू में मरने की मौत आती है पर नहीं आती काबा किस मुँह से जाओगे ?ग़ालिब' शर्म तुम को मगर नहीं आती??.

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे , ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे??

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी , अब किसी बात पर नहीं आती ??..

अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना ?..

छोटी उम्र में ही ग़ालिब से पिता का सहारा छूट गया था । 13 साल की उम्र में उमराव बेगम से हो गया था। शादी के बाद ही वह दिल्ली आए और उनकी पूरी जिंदगी यहीं बीती। गालिब ने 15 फरवरी 1869 को इस संसार को हमेसा के लिए अल्विदा कह दिया था।

Latest Stories

Also Read

CORONA A VIRUS? or our Perspective?

A Life-form can be of many forms, humans, animals, birds, plants, insects, etc. There are many kinds of viruses and they infect differently and also have a tendency to pass on to others.