भ्रष्टाचार पर निगाह रखने वाली सर्वोच्च संस्था लोकपाल का गठन हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष (पीसी घोष) को राष्ट्रपति ने देश का पहला लोकपाल नियुक्त किया है। लोकपाल की सूची में ९ ज्यूडिशियल मेंबर को भी शामिल किया गया हैं। इसमें जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को चेयरपर्सन बनाया गया है। राष्ट्रपति ने जस्टिस दिलीप बी भोंसले, जस्टिस पीके मोहंती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और जस्टिस एके त्रिपाठी को न्यायिक सदस्य के तौर पर नियुक्ती को मंजूरी दी है। दिनेश कुमार जैन, अर्चना रामासुंदरम, महेंद्र सिंह और डॉ. आईपी गौतम बतौर सदस्य नियुक्त किए गए हैं।
लोकपाल नियुक्ति मामले पर सुनवाई करते हुए गत ७ मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा था कि वह दस दिन के भीतर बताएं कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए नामों का चयन करने वाली चयन समिति की बैठक कब होगी। जिसके बाद बिते शुक्रवार को चयन समिति की बैठक बुलाई गई इस बैठक में जस्टिस घोष को लोकपाल बनाने पर सहमति बनी थी, हालांकि उनके नाम को लेकर आधिकारिक घोषणा नहीं की गई थी।
जस्टिस घोष आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस भी रहे हैं। जस्टिस घोष को मानवाधिकार कानूनों पर उनकी बेहतरीन समझ और विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं। जस्टिस घोष मई २०१७ में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे। इससे पहले वह कोलकाता और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। ज्ञात हो कि जस्टिस पीसी घोष ने ही शशिकला और अन्य को भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया था।
लोकपाल और लोकायुक्त कानून २०१३ में पारित किया गया था -
लोकपाल और लोकायुक्त कानून के तहत कुछ श्रेणियों के सरकारी सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान है।
लोकपाल समिति में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं। इनमें से चार न्यायिक सदस्य होने चाहिये।
इनमें से कम से कम ५० फीसदी सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाएं होनी चाहिये।
चयन के पश्चात अध्यक्ष और सदस्य पांच साल या ७० साल की आयु तक पद पर रहेंगे।