खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी यह कविता हर कसी ने स्कूल में जरुर पढ़ी होगी। आज ही के दिन यानी 18 जून, 1858 को अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गई थीं । उनकी बहादूरी के किस्से आज भी युवाओं में जोश भर देते है। तो आईए आज इस मौके पर बहादुर योद्धा के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों पर प्रकाश डाला जाए?
महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नंवबर 1835 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम 'मोरोपंत तांबे' और माता का नाम 'भागीरथी बाई' था। 14 साल की उम्र में उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधार राव से कर दी गई थी। 1838 में गंगाधर राव को झांसी का राजा घोषित कर दिया गया था। 1851 में उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन चार माह बाद उनके पुत्र का निधन हो गया। बीमार होने के कारण गंगाधर राव का भी निधन हो गया।
महज 18 साल की उम्र में महारानी लक्ष्मीबाई ने झांसी का कार्यभार सम्भालना शुरु किया ही था कि अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मी बाई की कम कम उम्र को देखते हुए उन्हें झांसी को खाली करने के लिए कहा और साथ ही 60,000 पेंशन देने की बात कही लेकिन रानी झांसी ने इस बात से इनकार कर दिया और खुद अंग्रेजों के साथ लड़ने के लिए अपनी अर्मी बनाई। जिसमें सिर्फ पुरुष ही नहीं महिलाए भी शामिल थी।
लक्ष्मी बाई ने झांसी को बचाने के लिए बागियों की फौज तैयार की। 1857 में बगावत ने अंग्रेजो का फोकस बदला और झांसी में रानी ने 14000 बागियों की सेना तैयार की। 18 जून को जब ग्वालियर को अंग्रेजो ने चारों तरफ से घेर लिया तो उस वक्त लक्ष्मी बाई ने हार न मानने की बजाए जंग करना ही सही समझा।इस युद्ध के दौरान वह अपने घोड़े से गिर गई जिसके चलते उन्हें काफी चोट आई और खून निकलना शुरू हो गया।