देश में आय दिन सड़क हादसे होते रहते है हादसे के दौरान घायल लोगों को कुछ लोग तत्काल अस्पताल लेकर जाते है तो वहीं कुछ ऐसे भी लोग है जो ये सोचते है कि पुलिस के पछड़े में कौन पड़ेगा। इसी तरह के पछड़े से छुटकारा और लोगों की मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सेव लाइफ फाउंडेशन की जनहित याचिका के तहत मार्च 2016 में नोटिफ़िकेशन जारी कर 'गुड सेमेरिटन लॉ' एक्ट लागू किया। इस एक्ट के तहत सड़क हादसे में अगर कोई व्यक्ति किसी घायल की मदद करता है तो कोई भी एजेंसी उसे पूछताछ या गवाही के नाम पर उसे परेशान नहीं करेगी।
ये कानून कहता है कि अगर कोई आपात स्थिति में हो और उसकी मदद के लिए कोई व्यक्ति पुलिस को फोन करे तो पुलिस उससे उसकी पहचान बताने को भी नहीं कहेगी। मददगार को अपनी पहचान और पता अस्पताल स्टाफ और पुलिस को बताने की जरूरत नहीं होगी।
सड़क दुर्घटना में घायलों को तत्काल मेडिकल सहायता उपलब्ध कराने वाले मददगारों को नेक आदमी (गुड सेमेरिटन) कहते है। इस एक्ट को पारित हुए दो साल हो गए है लेकिन आज भी मंजर ये है कि देश के लगभग 84 फीसदी लोगों को इस कानून के बारे में पता ही नहीं है।
जानकारी के लिए 96 प्रतिशत चिकित्सा पेशेवरों ने इस बात को स्विकार किया है कि उनके अस्पतालों में 'गुड सेमेरिटन लॉ' कमेटी ही नहीं है। ये बात जान कर आपको और भी हैरानी होगी कि 64 प्रतिशत पुलिस अफसरों को इस कानून के बारे में उचित जानकारी ही नहीं है। वो मानते है कि सेमेरिटिन का निजी विवरण लिया जाता है।
आलम ये है कि आज भी सड़क हादसों में घायल होने वाले लोगों को तुरंत मदद नहीं मिल पाती, जिसके कारण उनकी मौत हो जाती है। सेव लाइफ फाउंडेशन के संस्थापक पीयूष तिवारी ने जानकारी दी कि देश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरी तरह उल्लंघन हो रहा है। किसी भी अस्पताल ने अपने प्रवेश पर 'गुड सेमेरिटन लॉ चार्टर' का बोर्ड नहीं लगाया है।