दिल्‍ली हाइकोर्ट का फैसला, ‘चूर चूर नान' व ‘अमृतसरी चूर चूर नान’ पर किसी का एकाधिकार नहीं

Aazad Staff

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दिल्ली हाई कोर्ट में ‘चूर चूर नान’ और ‘अमृतसरी चूर चूर नान’ शब्द को लेकर याचिका दायर की गई थी जिसके तहत याचिका कर्ता ने दावा किया था कि ‘चूर-चूर नान' भाव पर उनका विशिष्ट अधिकार है क्योंकि उन्होंने इसके लिए पंजीकरण कराया हुआ है। कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि चूर चूर नान’ शब्द पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता है क्योंकि यह पूरी तरह से सार्वजनिक भाव है।

दिल्?ली हाइकोर्ट ने भोजन से जुड़े एक व्यंजन पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि चूर चूर नान और अमृतसरी चूर चूर नान शब्द पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता है क्योंकि यह पूरी तरह से सार्वजनिक भाव है। अदालत ने कहा कि ?चूर चूर? शब्द का मतलब ?चूरा किया हुआ? और ?चूर चूर नान? का अर्थ है ?चूरा किया हुआ नान? और इससे ज्यादा कुछ नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह ट्रेडमार्क हस्ताक्षर लेने के लिए योग्य नहीं है।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने प्रवीण कुमार जैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया है। बता दें कि जैन पहाड़गंज में एक भोजनालय के मालिक हैं जो नान एवं अन्य खाद्य पदार्थ बेचते हैं। जैन ने दावा किया था कि ?चूर-चूर नान' भाव पर उनका विशिष्ट अधिकार है क्योंकि उन्होंने इसके लिए पंजीकरण कराया हुआ है। जैन ने इस भाव का इस्तेमाल करने के लिए एक अन्य भोजनालय के खिलाफ ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप लगाया था और मामला दायर किया था।

अदालत ने कहा कि यदि पंजीकरण गलत तरीके से दिए गए हैं या ऐसे सामान्य भावों के लिए आवेदन किया गया है, तो इसे अनदेखा नहीं कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि इन शब्दों का इस्तेमाल सामान्य भाषा में बातचीत के दौरान होता है और ?चूर चूर? भाव के संबंध में किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता है।

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