सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नामजद पांचों आरोपियों को बुधवार को कोई राहत नहीं दी। शीर्ष अदालत ने बम्बई उच्च न्यायालय (Bombay High Court)के उस फैसले को निरस्त कर दिया जिसमें उसने महाराष्ट्र पुलिस को कोरेगांव-भीमा हिंसा (Bhima-Koregaon Violence Case) मामले में आरोपपत्र दायर करने के लिए अतिरिक्त समय देने से इनकार कर दिया था।
निचली अदालत ने राज्य पुलिस को मामले में आरोपपत्र दायर करने की अवधि में ९० दिन का विस्तार दे दिया था। मामले में गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि वे कानूनी रूप से जमानत के हकदार हैं क्योंकि महाराष्ट्र पुलिस ने निर्धारित ९० दिन और उसके बाद भी आरोपपत्र दायर नहीं किया। ऐसी स्थिति में निचली अदालत द्वारा समय सीमा बढ़ाना कानूनी दृष्टि से सही नहीं था।
गौरलतब है कि पुणे पुलिस ने नक्सलियों से कथित संबंधों के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की संबंधित धाराओं के तहत वकील सुरेंद्र गडलिंग, नागुपर विश्वविद्यालय के प्रफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल के रोना विल्सन को जून में गिरफ्तार किया था।