स्?वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर का जन्?म २८ मई, १८८३ को नासिक में हुआ था। उनके पिता दामोदर पंत गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में जाने जाते थे। सावरकर जब ९ साल के थे तभी उनकी मां राधाबाई का देहांत हो गया था।
उन्?होंने भारत और ब्रिटेन में पढ़ाई के दिनों से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। ब्रिटेन में वह इस सिलसिले में इंडिया हाउस, अभिनव भारत सोसायटी और फ्री इंडिया सोसायटी से जुड़े।
१८५७ के भारत के प्रथम स्?वतंत्रता संग्राम पर उन्?होंने 'द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस' (The Indian war of Independence) नामक पुस्?तक लिखी। हालांकि इनकी किताब को प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया।
१९०४ में उन्?होंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। १९०५ में सावरकर ने बंगाल के विभाजन के बाद पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। उनके लेख इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। कई लेख कलकत्ता के युगान्तर में भी छपे।
क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस से जुड़े होने के कारण उनको १९१० में गिरफ्तार किया गया। उनको कुल ५० वर्षों की दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और अंडमान एवं निकोबार द्वीप में स्थित सेल्?युलर जेल में रखा गया। बता दें कि सावरकर को नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत अप्रैल, १९११ को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया।
सैल्यूलर जेल में उन क्रांतिकारियों को रखा जाता था जिनसे ब्रिटिश शासन खौफ खाता था। यहां पर स्?वतंत्रता सेनानियों को कोल्?हू में लगाया जाता था और तेल निकलवाया जाता था। सावरक को १० साल की सजा सुनाई गई थी १९२१ में उन्हे रिहा कर दिया गया था।
जेल में रहने के दौरान सावरकर ने 'हिंदू राष्?ट्रवाद' और 'हिंदुत्?व' अवधारणा पर काफी कुछ लिखा। वह हिंदू महासभा के अध्?यक्ष भी रहे। बता दें कि सावरकर दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य-योद्धा थे जिन्हें २-२ आजीवन कारावास की सजा मिली, सजा को पूरा किया और फिर से वे राष्ट्र जीवन में सक्रिय हो गए।
२६ फरवरी १९६६ को उनका निधन हो गया। गौरतलब है कि अंडमान और निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्?लेयर के एयरपोर्ट का नाम वीर सावरकर अंतरराष्?ट्रीय एयरपोर्ट रखा गया है। कुछ समय पहले शिवसेना ने सरकार से उनको मरणोपरांत भारत रत्?न देने की मांग की थी।