?तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजांदी दूंगा? इस कथन ने हजारों नौ जवानों के दिलों में क्रांती का जोश भर दिया। बोस के इन शब्दों ने हर एक भारतीय को झकझोर दिया था। बच्चे-बूढ़े-जवान सभी उनके साथ जुड़ने लगे थे। इसी के साथ भारत की आजादी का सपना देखने और उसे साकार करने की कोशिश करने वालों में सुभाष चंद्र बोस का नाम सबसे पहले लिया जाता है। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उडिसा के कटक शहर में हुआ था। इनके पिता ?जानकी दास बोस? नामचिन वकिल थे।
सुभाष चंद्र बोस 24 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस से जुडे़। राजनीति में कुछ वर्ष सक्रिय रहने के बाद उन्होंने महात्मा गांधी से अलग अपना एक दल बनाया। इस दल में उन्होंने खास तौर पर युवाओं को शामिल किया।
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के विचारों से हमेशा ही असहमत रहने वालों में से थे. उनका मानना था कि ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर करने के लिए गांधी की अहिंसा की नीति किसी काम की नहीं है और इससे उन्हें आजादी हासिल नहीं होगी. उन्होंने कई बार इस बात का खुले तौर पर विरोध भी किया.
सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की-
देश को आजाद कराने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और बाद मं पूर्वी एशिया में रहते हुए अपनी अलग सेना बनाई. जिसे बाद में उन्होंने आजाद हिंद फौज का नाम दिया। ज्यादा से लोगों को इस आंदोलन से जोड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की भी स्थापना की। ताकि वह इसके माध्यम से जर्मनी में रह रहे भारतीयों को अपनी सेना में शामिल कर सकें।
कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह और मेजर जनरल शाहनवाज खान के खिलाफ कोर्ट मार्शल किया गया। 17000 जवानों के खिलाफ केस चला। तीनों सैन्य अधिकारियों पर मुकदमा दिल्ली के प्रसिद्ध लाल किले में चला। इस कोर्ट मार्शल को 'रेड फोर्ट ट्रायल' के नाम से भी जानते हैं। बहरहाल इन तीनों के खिलाफ ब्रिटिस सरकार ने फांसी को सजा का ऐलान किया था। इस सुनवाई के दौरान सड़कों पर पूरे भारत में देशभक्ति का ऐसा ज्वार भड़का। लोगों ने नारे लगाए 'लाल किले को तोड़ दो, आजाद हिन्द फौज को छोड़ दो।' अंग्रेजों को फैसला बदलना पड़ा। और फांसी की सजा माफ कर दी गई। और अंत में अंग्रेजो को भारत भी छोड़ना पड़ा।
इनकी मौत की गुत्थी आज भी रहस्यमय-
लंबे समय तक यह विवाद बना रहा कि 18 अगस्त, 1945 को विमान दुर्घटना में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत हुई थी या नहीं। एक बड़ा वर्ग मानता रहा कि नेताजी की माैत ताइवान की उस विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। कुछ लाेग यह भी मानते रहे कि उत्तराखंड में कई सालाें तक रहनेवाले जिस स्वामी शारदानंद की माैत 14 अप्रैल, 1977 काे हुई थी, दरअसल में वे नेताजी ही थे। हालांकि सरकार इससे इनकार करती रही. नेताजी की माैत की जांच के लिए कई आयाेग बने।