भारत को अंग्रेजों से आज़ाद करवाने में देश के कई क्रांतिकारियों ने अपनी जान गवां दी| उनकी कुर्बानियों की बदौलत ही हम आज आज़ादी के साथ जी पा रहे हैं| कुछ क्रांतिकारी ऐसे भी हैं, जिन्होंने अंग्रेजों की इस लड़ाई में अपनी जान गवा दी लेकिन उनकी इस कुरबानी को ज्यादा तर लोग नहीं जानते। इन्हीं में से एक हैं तारारानी श्रीवास्तव।
तारा रानी श्रीवास्तव का जन्म बिहार की राजधानी पटना के नजदीक सारण जिले में हुआ था। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें तिरंगा बेहद प्रिय था और वह इसके लिए जान भी दे सकतीं थीं। कम उम्र में ही उनकी शादी जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी फूलेंदु बाबू से कर दी गई थी। अपने पति फूलेंदु बाबू की तरह ही तारा रानी भी देश को आजादी दिलाने के लिए हर कदम पर उनके साथ रहती थी।
जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था | उस समय उनके पति फूलेंदु बाबू भी सिवान थाने की तरफ चल दिए| उनके साथ पूरा जनसैलाब था । तारारानी इन सभी का नेतृत्व कर रहीं थीं| 12 अगस्त 1942 का दिन उनके लिए सबसे दर्दनाक दिन था| तारा रानी अपने पति के साथ सभी को लेकर आगे बढ़ रही थीं। भारी हंगामे के बीच पुलिस ने लाठियां बरसाई इसके बाद भी जब भीड़ नहीं रुकी तो पुलिस ने गोलियां चला दी इस बीच तारा रानी के पति फुलेन्दु बाबू पुलिस की गोली लगने पर घायल हो गए।
इसके बाद तारारानी उनके पास गईं और उनके घाव पर पट्टी बांधी| फिर जो उन्होंने किया, वह शायद ही कोई कर सकता था। वह वहीं से फिर वापस मुड़ीं और पुलिस स्टेशन की तरफ चल पड़ीं| तिरंगा लहराना था, तिरंगा लहराया| तिरंगा फहराकर जब वे अपने पति के पास आईं, तब तक उन्होंने अपने पति को खो दिया था| उनके अंतिम संस्कार में भी वे खुद को मज़बूत बनाए खड़ी रहीं|
15 अगस्त, 1942 को छपरा में उनके पति की देश के लिए कुर्बानी के सम्मान में प्रार्थना सभा रखी गयी थी। अपने पति को खोने के बाद भी तारा आजादी और विभाजन के दिन 15 अगस्त, 1947 तक गाँधी जी के आंदोलन का अहम् हिस्सा रहीं।