महान क्रांतिकारी बिपिन चंद्र पाल से जुड़ी कुछ खास बातें

Aazad Staff

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भारत में क्रांतिकारी विचारों के जनक माने जाते थे बिपिन चंद्र पाल।

बिपिन चंद्र पाल एक भारतीय क्रांतिकारी, इनका जन्म 7 नवंबर, 1858 को सिलहट में हुआ था। बहुत छोटी आयु में ही बिपिन चंद्र पाल ब्रह्म समाज में शामिल हो गए थे और समाज के अन्य सदस्यों की भांति वे भी सामाजिक बुराइयों और रुढ़िवादी परंपराओं का विरोध करने लगे।

बिपिन चंद्र पाल महान क्रांतीकारी के साथ साथ शिक्षक, पत्रकार व लेखक भी थे। पाल का नाम उन क्रांतीकारियों में सुमार है जिन्होने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियाद तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। वे मशहूर लाल-बाल-पाल (लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल) तिकड़ी का हिस्सा थे। इस तिकड़ी ने अपने तीखे प्रहार से अंग्रेजी हुकुमत की नींव को हिला दिया था। अपने ?गरम? विचारों के लिए मशहूर पाल ने स्वदेशी आन्दोलन को बढ़ावा दिया और ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज तथा औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि हथिआरों से ब्रिटिश हुकुमत की नीद उड़ा दी।

बिपिन चंद्र पालसन 1905 के बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी शासन के खिलाफ चलाए गए आंदोलन में बड़ा योगदान दिया जिसे बड़े पैमाने पर जनता का समर्थन मिला। लाल-बाल-पाल की इस तिकड़ी ने महसूस किया कि विदेशी उत्पादों से देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है और लोगों का काम भी छिन रहा है।

राष्ट्रीय आंदोलन के शुरूआती सालों में ?गरम दल? की महत्वपूर्ण भूमिका रही क्योंकि इससे आंदोलन को एक नई दिशा मिली और इससे लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी। बिपिन चन्द्र पाल ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान आम जनता में जागरुकता पैदा करने में अहम भूमिका निभाई। उनका मानना था कि ?नरम दल? के हथियार ?प्रेयर-पीटिशन? से स्वराज नहीं मिलने वाला है बल्कि स्वराज के लिए विदेशी हुकुमत पर करारा प्रहार करना पड़ेगा। इसी कारण उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन में ?क्रांतिकारी विचारों का पिता कहा जाता है?।

पाल ने क्रांतिकारी पत्रिका ?बन्दे मातरम? की स्थापना भी की थी। तिलक की गरफ्तारी और स्वदेशी आन्दोलन के बाद अंग्रेजों की दमनकारी निति के बाद वे इंग्लैंड चले गए। वहाँ जाकर वे क्रान्तिकारी विधार धारा वाले ?इंडिया हाउस? (जिसकी स्थापना श्यामजी कृष्ण वर्मा ने की थी) से जुड़ गए और ?स्वराज? पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। जब क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा ने सन 1909 में कर्ज़न वाइली की हत्या कर दी तब ?स्वराज? का प्रकाशन बंद कर दिया गया और लंदन में उन्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस घटना के बाद बिपिन चन्द्र पाल ने अपने आप को उग्र विचारधारा से अलग कर लिया। वंदे मातरम् राजद्रोह मामले में उन्होंने अरबिन्दो घोष के ख़िलाफ़ गवाही देने से इंकार कर दिया जिसके कारण उन्हें 6 महीने की सजा हुई।

बिपिन एक कुशल लेखक और संपादक भी थे। उन्होंने कई रचनाएँ भी की और कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। इनमें से कुछ के नाम इस प्रकार है-
? इंडियन नेस्नलिज्म
? नैस्नल्टी एंड एम्पायर
? स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशन
? द बेसिस ऑफ़ रिफार्म
? द सोल ऑफ़ इंडिया
? द न्यू स्पिरिट
? स्टडीज इन हिन्दुइस्म
? क्वीन विक्टोरिया ? बायोग्राफी

20 मई 1932 को बिपिन चंद्र पाल का कोलकाता में निधन हो गया

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