न्याय - पथ लीला सेठ (पूर्व चीफ जस्टिस) Justice Leila Seth Passes Away

Sarita Pant

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Justice Leela Seth, the the first woman judge on the Delhi Court and the first woman to become Chief Justice of a State High Court breathed her last on May 5, 2017. भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ और लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने तथा भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है |

मृत्युमृत्युजस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था| जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

अंतर राष्ट्रीयअंतर राष्ट्रीयअंतर राष्ट्रीयविक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ अंतर राष्ट्रीयविक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

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जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |वकालत की शरुवात वकालत की शरुवात वकालत की शरुवात :-वकालत की शरुवात :-वकालत की शरुवात :-वकालत की शरुवात :- प्रेकटिस प्रेकटिस प्रेकटिस प्रेकटिस प्रेकटिस प्रेकटिसकुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|एक्सिसेएक्सिसेलीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|वकालत की शरुवात :-कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

Born on 20 October 1930, in Lucknow, India, Justice Leila Seth was the 1st woman judge on the Delhi High Court. She became the first woman to become Chief Justice of a state High Court on 5 August 1991. She was also the first woman to top the London Bar exam in 1958 and also graduated as an IAS Officer in the same year.

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

Born on 20 October 1930, in Lucknow, India, Justice Leila Seth was the 1st woman judge on the Delhi High Court. She became the first woman to become Chief Justice of a state High Court on 5 August 1991. She was also the first woman to top the London Bar exam in 1958 and also graduated as an IAS Officer in the same year.

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

Born on 20 October 1930, in Lucknow, India, Justice Leila Seth was the 1st woman judge on the Delhi High Court. She became the first woman to become Chief Justice of a state High Court on 5 August 1991. She was also the first woman to top the London Bar exam in 1958 and also graduated as an IAS Officer in the same year.

Justice Leila Seth was also a part of the judicial committee headed by J. S. Verma, a former Judge of Supreme Court, to suggest amendments to criminal law to sternly deal with sexual assault cases following the Nirbhaya case. She was also involved in her fight for gay rights as her Son Vikram Seth came out in public about his sexuality.

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

Born on 20 October 1930, in Lucknow, India, Justice Leila Seth was the 1st woman judge on the Delhi High Court. She became the first woman to become Chief Justice of a state High Court on 5 August 1991. She was also the first woman to top the London Bar exam in 1958 and also graduated as an IAS Officer in the same year.

Justice Leila Seth was also a part of the judicial committee headed by J. S. Verma, a former Judge of Supreme Court, to suggest amendments to criminal law to sternly deal with sexual assault cases following the Nirbhaya case. She was also involved in her fight for gay rights as her Son Vikram Seth came out in public about his sexuality.

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

Born on 20 October 1930, in Lucknow, India, Justice Leila Seth was the 1st woman judge on the Delhi High Court. She became the first woman to become Chief Justice of a state High Court on 5 August 1991. She was also the first woman to top the London Bar exam in 1958 and also graduated as an IAS Officer in the same year.

Justice Leila Seth was also a part of the judicial committee headed by J. S. Verma, a former Judge of Supreme Court, to suggest amendments to criminal law to sternly deal with sexual assault cases following the Nirbhaya case. She was also involved in her fight for gay rights as her Son Vikram Seth came out in public about his sexuality.

Death: Justice Leila Seth breathed her last on Saturday, May 5, 2017. She died in her home in Noida.

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

Born on 20 October 1930, in Lucknow, India, Justice Leila Seth was the 1st woman judge on the Delhi High Court. She became the first woman to become Chief Justice of a state High Court on 5 August 1991. She was also the first woman to top the London Bar exam in 1958 and also graduated as an IAS Officer in the same year.

Justice Leila Seth was also a part of the judicial committee headed by J. S. Verma, a former Judge of Supreme Court, to suggest amendments to criminal law to sternly deal with sexual assault cases following the Nirbhaya case. She was also involved in her fight for gay rights as her Son Vikram Seth came out in public about his sexuality.

Death: Justice Leila Seth breathed her last on Saturday, May 5, 2017. She died in her home in Noida.

जस्टिस लीला सेट का जन्म लखनऊ मे अक्टूबर १९३० मे हुआ| बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बडी और मुश्किलों का सामना करते हुई हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है| मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था|

भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस रही लीला सेठ ने अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा लीला सेठ की अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन मे बार की परीक्षा १९५८ मे टॉप रहने, भारत के १५वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है|

लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला ग्रेजूएट भी नही थी, बाद मे प्रेमो को इंग्लैंड मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से ग्रेजूऐशन किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हजारी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये ला कौर्से करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा मे अवल रही |

वकालत की शरुवात :-
कुछ समय बाद पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत की प्रेकटिस करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाये होती थी कोल्कता मे उन्होने शरुवात की लेकिन बाद मे पटना मे आ कर उन्होने प्रेकटिस शरू की|
१९५९ मे उन्होने बार मे दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली मे वकालत की|
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिसे ड्यूटी और कस्टम सम्भंदी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये|
१९७८ मे वे दिल्ली हाई-कोर्ट की पहली महिला जज बनी और बाद मे १९९१ मे हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्या न्यायैदीश नियुक्त की गई| महिलायों के साथ भेद-भाव के मामले, सयोक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिसैदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच जैसे मामलो मे लीला सेठ की महतवपूर्ण भोमिका रही है|
१९९५ मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जाच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिमैदारी संभाली १९९८ से २००० तक वे ल कोम्मिसिओं ऑफ़ इंडिया की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानूनो संशोधन कराया जिसके तहत सयोक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया|

महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही मे अपनी पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद ' घर और आदालत ' मैं उन्होने जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है|
लीला ने एक जगे लिखा है " मैने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है ' झगडा कर के कभी मत सोना, रात के अंधेरे मे यह और बढता है, इसलिये हम हमेशा विवाद ख़तम कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमो और नौकरशाही के बारे मे अपना कटु अनुभव इन शब्दों मे व्यक्त किया है " एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक जज होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व् भारी भरकम कंपनी से लडने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो कानों की पेचीदगियो मे फसी उन आम लोगो को कितनी परेशानियो और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सता तक पहुच नही है य उनकी सुने वाला कोई नही है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लडने के लिये पैसा और समय नही है या उन्हे यह जानकारी नही है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाजा खटखटाए |

१९९२ मे हिमाचल परदेश की चीफ जस्टिस पद से Ritire हुई लगभग ८० वर्शियाई लीला सेठ अब भी कई संसथाओ बोर्डो, कमिशनो मे अपना योगदान दे रही है भारतयी अन्त्ररास्त्रियाई सेंटर, The National Knowledge Center,The Popular Foundation of India, Lady Shriram Collaege, Modern स्कूल बसंत विहार Mayo collaege से भी जुडी हुई है|

शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा ६० साल बिता चुकी लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी अगेंसियो के माध्यम से वे सामाजिक कार्यो से भी जुडी हुई है|

जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु ६ मई २०१७ को नोएडा में सेक्टर १५ में अपने घर पर हुई जस्टिस लीला ८७ साल की थी |
जस्टिस लीला सेठ की ऑटोबायोग्राफी "ऑन बैलेंस " जो पेंगुइन भारत २०१३ में छपी गयी जिसमे लीला ने अपने जीवन के संघर्ष अपना काम का तजुर्बा दिल्ली, पटना और कलकत्ता में ५० साल उनकी शादी-शुदा ज़िन्दगी की यादे लिखी | उनके तीन बच्चे है विक्रम सेठ लेखैक शांतुं और आराधना।

जस्टिस लीला सेठ निर्भया गैंग रेप में सुधार के लिए भी कोशिश कीओर ये भी एक हकीकत है कि उनके मृत्यु के दिन ही निर्भया गैंग रेप का परिडाम आया और निर्भया के कुसुरवारो को सुप्रीम कोर्ट में फासी की सजा सुनाई गयी |

Born on 20 October 1930, in Lucknow, India, Justice Leila Seth was the 1st woman judge on the Delhi High Court. She became the first woman to become Chief Justice of a state High Court on 5 August 1991. She was also the first woman to top the London Bar exam in 1958 and also graduated as an IAS Officer in the same year.

Justice Leila Seth was also a part of the judicial committee headed by J. S. Verma, a former Judge of Supreme Court, to suggest amendments to criminal law to sternly deal with sexual assault cases following the Nirbhaya case. She was also involved in her fight for gay rights as her Son Vikram Seth came out in public about his sexuality.

Death: Justice Leila Seth breathed her last on Saturday, May 5, 2017. She died in her home in Noida.

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