चंद्रयान-२, निश्चलानंद सरस्वती के वैदिक गणित का किया गया इस्तेमाल

Aazad Staff

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इसरो / ISRO (Indian Space Research Organisation) द्वार परिक्षण चंद्रयान-२’ में पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती के वैदिक गणित का किया गया इस्तेमाल।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हाल ही में ?चंद्रयान-२? (Chandrayaan-2) से ली गई पृथ्वी की तस्वीरों का पहला सेट जारी किया। इस बीच चंद्रयान-२ मिशन में वैदिक गणित (Vedic Mathematics) की अहम भूमिका की बात सामने आई है। बताया जा रहा है कि वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-२ के परिक्षण में हो रही कुछ दिक्कतों को दूर करने के लिए वैदिक गणित (मैथ्स) का सहारा लिया था

सूत्रों की माने तो इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-२ के सफल परिक्षण के पहले गोवर्धन मठ (Govardhana Matha) के स्वामी निश्चलानंद सरस्वती पुरी शंकराचार्य (Swami Nischalananda Saraswati Puri Shankaracharya) से इस विषय में परामर्श लिया गया था। ऐसा कुछ संदेहों को दूर करने के लिए किया गया था जिसका समाधान उस समय वैज्ञानिकों के पास भी नहीं था।

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शंकराचार्य के गोवर्धन पीठ के जनसंपर्क अधिकारी, मनोज रथ ने तीर्थ नगरी पुरी में पत्रकारों से अंतरिक्ष एजेंसी के विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि "गुरु निश्चलानंद ने इसरो के वैज्ञानिकों से वैदिक ग्रंथों जैसे कि पुराणों और भगवद गीता में प्रचलित मान्यताओं और गणनाओं की मदद से इस परिक्षण को सफतला पूर्वक लागू करने के लिए मुलाकात की।

मिशन के रूप में भारत हजारों साल पहले गणित, खगोल विज्ञान, मिसाइल प्रौद्योगिकी में अग्रणी था। बता दें कि निश्चलानंद सरस्वती एक आध्यात्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि एक विशेषज्ञ वैदिक गणितज्ञ भी हैं।

श्री राठ ने कहा १४५ वें शंकराचार्य होने के नाते, वह अपने महान पूर्ववर्ती १४३ वें शंकराचार्य भरत कृष्ण तीर्थ के नक्शेकदम पर चल रहे हैं, जो प्राचीन वैदिक गणित में अग्रणी के रूप में दुनिया भर में प्रसिद्ध थे।

वर्षों के अनुसंधान के बाद, निश्चलानंद सरस्वती ने वैदिक गणित को और अधिक समृद्ध करने के लिए ११ प्रसिद्ध पुस्तकों का उल्लेख किया है। श्री राठ ने कहा कि शून्य कैसे एक शून्य या शून्य संख्या है जो सभी प्रकार के विकार की ओर ले जा रही है। उनके कार्यों से प्रेरित होकर, दुनिया भर के विशेषज्ञ गणितीय शोध पर उनकी सलाह और सुझाव चाहते हैं।

उल्लेखनीय है कि भारत के लिए २२ जुलाई का दिन ऐतिहासिक रहा। भारत चंद्रमा पर एक अन्वेषण मिशन भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया। इस मिशन को सफल बनाने के लिए हजारों वैज्ञानिकों का योगदान रहा जो हमेशा ही याद किया जाएगा।

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