सन १९२२ मे मध्य प्रदेश मे होशंगाबाद बाद जिले के गाँव जमानी नामक गाँव मे हरिशंकर परसाई का जन्म हुआ | गाँव से प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आये | नागपुर विश्व विद्यालय से उन्होने एम् ए हिंदी की परीक्षा पास की | कुछ दिनों तक उन्होने अध्यापन कार्य किया | इसके बाद उन्होने स्वतंत्र लेखन प्रारंभ कर दिया | उन्होने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका 'वसुधा' का प्रकाशन किया |
परन्तु घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा | लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनॅतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। उनकी भाषा?शैली में खास किस्म का अपनापा है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।
१० अगस्त , सन १९९५ मे उनका निधन जबलपुर मद्यप्रदेश मे हो गया|
रचनाये :- कहानी संग्रह हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव।
उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल ।
निबंध संग्रह :- तब की बात और थी भूत के पाँव पीछे, बईमानी की परत, पगडण्डियों का जमाना,शिकायत मुझे भी है सदाचार का ताबीज और अंत मे | प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा|
व्यंग संग्रह ;- वैष्णव की फिसलन ,तिरछी रेखाये , ठितुरता हुआ गड्तन्त्र, विकलांग श्रद्धा का दौरा |
साहित्यिक विशेषताये :- पाखंड , बईमानी आदि पर परसाई जी ने अपने व्यंगो से गहरी चोट की है | वे बोलचाल की सामन्य भाषा का प्रयोग करते है चुटीला व्यंग करने मई परसाई बेजोड़ है |
भाषा शैली :- हरिशंकर परसाई की भाषा मे व्यंग की प्रधानता है उनकी भाषा सामान्यबी और सरंचना के कारण विशेष शमता रखती है | उनके एक -एक शब्द मे व्यंग के तीखेपन को देखा जा सकता है |लोकप्रचलित हिंदी के साथ साथ उर्दू ,अंग्रेजी शब्दों का भी उन्होने खुलकर प्रयोग किया है |