तुलसी विवाह क्या है और कब मनाया जाता है

Sarita Pant

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तुलसी विवाह देव उठनी एकादशी जिसे प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। तुलसी विवाह हिंदू देव विष्णु या उनके अवतार कृष्ण को तुलसी संयंत्र (पवित्र तुलसी) की औपचारिक विवाह है।

द्वादशी तिथी प्रारम्भ = १४ :२९ १९ नवंबर २०१८
द्वादशी तिथी समाप्ति= १४ :४० २० नवंबर २०१८

देव उठनी एकादशी जिसे प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। इसे पापमुक्त करने वाली एकादशी भी माना जाता है, ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पापो से मुक्ति मिलती है ये कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के गयारह दिन मनाई जाती है ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु समेत सभी देवता शीर सागर में चले गये थे |

तुलसी विवाह के दिन लोग दिवाली की तरह घर को सजाते है तथा दिये जलते है | दियो से अपने घर में रौशनी करते है | तुलसी विवाह भगवान विष्णु के साथ एक ऑपचारिक विवाह है | कुछ लोगो का ये भी कहना है कि इस दिन विष्णु भगवान विष्णु चार महीने सोने के बाद जागते है, तुलसी से भगवन विष्णु बहुत प्रेम करते थे |

तुलसी का नाम वृद्धा है तुलसी देवी लक्ष्मी का अवतार थी जो वृंदा के रूप में पैदा हुई | तुलसी विवाह हिंदू देव विष्णु या उनके अवतार कृष्ण को तुलसी संयंत्र (पवित्र तुलसी) की औपचारिक विवाह है।

तुलसी का भगवन विष्णु से विवाह शादी की परम्परा का पालन करता है विवाह के लिये तुलसी पौधे को दुल्हन की तरह दिखने के लिये सजाया जाता है तथा पीले वस्त्र से सजाना चाहिये और चारो तरफ गन्ने का मंडप बनाना चाहिये और दुल्हन की तरह साड़ी गहने, झुमके तथा हार से लपेटा जाता है और समोरह शुरू करने के लिये दम्पति को कपास के धागे से जोड़ा जाता है सभी मंत्रो से विवाह किया जाता है और बाद में रोली चावल मिलाकर तुलसी और शालीगरम पर वर्षा की जाती है |

या तो तुलसी विवाह पंडित जी से विधि विधान से करवाना चाहिए या खुद से ही ॐ तुलसिये नमः करके विवाह करवाना चाहिये | इस दिन गन्ना, बेर और आंवला का फल खाने से लाभ होता है |

तुलसी को हिंदू धर्म में देवी के रूप में पूजा जाता है। पुराणी परम्परा के अनुसार तुलसी का पूजन करने से पाप का अंत हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है |

श्री तुलसी जी की आरती
जय जय तुलसी माता, सबकी सुखदाता वर माता।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर,
रुज से रक्षा करके भव त्राता।
जय जय तुलसी माता।
बहु पुत्री है श्यामा, सूर वल्ली है ग्राम्या,
विष्णु प्रिय जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता।
जय जय तुलसी माता।
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित,
पतित जनों की तारिणि, तुम हो विख्याता।
जय जय तुलसी माता।
लेकर जन्म बिजन में आई दिव्य भवन में,
मानव लोक तुम्हीं से सुख सम्पत्ति पाता।
जय जय तुलसी माता।
हरि को तुम अति प्यारी श्याम वर्ण सुकुमारी,
प्रेम अजब है श्री हरि का तुम से नाता।
जय जय तुलसी माता।

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