बसंत पंचमी का त्योहार हर साल माघ मास में शुक्ल पक्ष की पांचवे दिन मनाया जाता है। इस दिन को वागीश्वरी जयंती और श्री पंचमी के नाम से भी मनाया जाता है। बसंत पंचमी के दिन के बारे में मान्यता है कि इस दिन ज्ञान-विज्ञान, संगीत, कला और बुद्धि की देवी माता सरस्वती का जन्म हुआ था। इसलिए बसंत पंचमी के दिन खास तौर पर देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि पूजा करने के बाद पढ़ाई करेंगे तो मां सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहेगी।
इस कारण हुआ था मां सरस्वती का जन्म- ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने मनुष्य की रचना की. लेकिन अपने सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु जी से सलाह लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का. पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।
पीले रंग का महत्व-
इस त्योहार पर पीले रंग का बहुत महत्व है, वसंत का रंग पीला होता है जिसे वसंती रंग के नाम से जाना जाता है जोकि समृद्धि, ऊर्जा, प्रकाश और उम्मीद का प्रतीक है। यही कारण है कि लोग इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले रंग के व्यंजन बनाते हैं।
(बसंत पंचमी के त्योहार पर सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त आज सुबह 07 बजकर 17 मिनट से शुरू हो जाएगा। यह मुहूर्त करीब 5 घंटे और 15 मिनट तक रहेगा यानी दोपहर 12 बजकर 32 मिनट पर देवी सरस्?वती की आराधना का शुभ मुहूर्त समाप्त हो जाएगा।)
इन कार्यों के लिए शुभ व फलदायक होता है ये दिन -
- आज का दिन गृह प्रवेश के लिए शुभ माना जाता है।
- आज के दिन अगर कोई वाहन खरीदते है तो काफी अच्छा माना जाता है।
- आज के दिन किसी कार्य को करने की नींव पूजन,व नया व्यापार प्रारंभ करना शुभ होता बै।
- आज के दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते और साथ ही पीले रंग के पकवान बनाते हैं।
मां सरस्वती की आराधना करते वक्?त इस श्?लोक का उच्?चारण करना चाहिए:
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।। कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्। वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्। सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:।