30 अप्रैल, 1870 को नासिक के पास त्रयंबकेश्वर में दादा साहब फाल्के का जन्म हुआ था। आज इनकी 74वीं पुण्यतिथि है। भारतीय सिनेमा के जनक? कहे जाने वाले फाल्के ने फोटोग्राफी की। नाटकों में मंच सज्जा की और 1903 में सरकारी नौकरी भी की, जिसे उन्होंने स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर छोड़ दिया। वैसे तो सिनेजगत में दादा साहब फाल्के का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी लोकप्रियता इसी बात से भी साबित हो जाती है कि बॉलीवुड फिल्मों में विशेष योगदान देने वालों को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जाता है।
भारत की पहली फिल्म ?राजा हरिश्चंद्र? के निर्माता, निर्देशक, कथाकार, सेट डिजाइनर, ड्रेस डिजाइनर, वितरक व संपादक, सब कुछ वही थे। कहा जा सकता है कि वह ?वन मैन आर्मी? थे। ?राजा हरिश्चंद्र? बनाकर फाल्के ने भारतीय सिनेमा की नींव डाली। यह फिल्म 21 अप्रैल, 1913 को रिलीज हुई। इस फिल्म ने भले ही हिंदी सिनेमा की नींव डाली हो, लेकिन इस नींव को पुख्ता करने का काम अभी बाकी था। ?भस्मासुर मोहिनी?, ?सत्यवान सावित्री?, ?लंका दहन? जैसी फाल्के फिल्म्स कंपनी की बाद की फिल्मों ने यह काम किया।
1931 में उनकी आखिरी मूक फिल्म ?सेतु बंधन? आई। इसी साल आर्देशिर एम. ईरानी ने भारत की पहली बोलती फिल्म ?आलम आरा? रिलीज की। फाल्के ने 1934 में कोल्हापुर सिनेटोन के लिए अपनी पहली और अंतिम बोलती फिल्म ?गंगावतरण? बनाई। सत्तर की उम्र तक आते-आते उनकी तबीयत नासाज रहने लगी।
1969 में भारत सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए उनके नाम से हर साल भारतीय सिनेमा से जुड़ी किसी एक हस्ती को दादा साहब फाल्के पुरस्कार देना शुरू किया। 6 फरवरी, 1944 को नासिक में उन्होंने गुमनामी के अंधेरे में आखिरी सांस ली।