Sunday, Dec 22, 2024 | Last Update : 06:55 PM IST
आर्यभट ने गणित विश्व के महान वैज्ञानिकों मे आर्यभट् का नाम बड़े आदर से लिया जाता है ।गणित तथा ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता आर्यभट ने गणित में अशरणक पद्दति तथा नक्षत्र जगत में कई नये सिद्धांतो की जानकारी विश्व को दी अंतररिक्ष की चर्चा आते ही आर्यभट का नाम जिह्वा पर आता है ।
भारत अंतररिक्ष में १९ अप्रैल १९७५ को छोड़े गये पहले कृतिम उपग्रह का नाम 'आर्यभट' ही था । आर्यभट भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है ।
आर्यभट् के जन्मस्थान और जन्मतिथि के विषय में निश्चित से कुछ नही कहा जा सकता । कुछ संकेतो से मालूम होता है कि वे पाटलिपुत्र वर्त्तमान पटना के निकट कुसुमपुर के निवासी थे । वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे कुछ लोगो के अनुसार आर्यभट अश्मक नामक जनपद के निवासी थे परन्तु गणित और ज्योतिष के गहन अध्धयन के लिये ही वे पाटलिपुत्र गये थे ।
आर्यभट को ज्योतिष सम्राट भी कहा जाता है आर्यभट ने अपने अनुभवो और विचारो को आर्यभट्यम नामक ग्रंथ में संकलित किया ।इस ग्रन्थ को आर्यभटीय भी कहते है संस्कृत भाषा में लिखी यह पुस्तक पदय में है जब ये पुस्तक लिखी गयी उस पुस्तक के श्लोक के आधार पर कहा जा सकता है कि आर्यभटउस समय सिर्फ २३ वर्ष के ही थे ।
इतनी छोटी आयु में धरमग्रंथ और परमपरागत धारणयो का खंडन कर नवीन विचारो और धारणाओं को स्थापना करना कोई आसान काम न था पर आर्यभट थे भट यानि योद्धा और योद्धा का काम है - लड़ना वे जीवनभर पुरानी बातो के विरूद्ध युद्ध करते रहे ।
आर्यभटीय में गणित और ज्योतिष दोनों ही है । इसे चार भागो में बाटा गया है - दशगीतिका, गणित, कालपाद और गोलपाद । १२१ श्लोकों से है गणित और ज्योतिष के ज्ञान के ज्ञान का भंडार है ।
आर्यभट् महान ज्योतिषशास्त्री थे आर्यभट ने आज से हजार वर्ष पहले यह बता दिया था कि चन्द्रमा स्वयं नही चमकता अपितु वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है ।
आर्यभट के अध्ययन से उस समय के लोगो ने यह जान लिया था कि चाँद के प्रकट होने तथा गायब होने के मध्य एक निशचित समय होता है सूरज, चाँद तथा नवग्रह जिन मार्गो से यात्रा करते है उसे 'रवि मार्ग कहा गया और इसी के आधार पर ज्योतिषियों नै बारहा राशियों का विभाजन किया ।
आज भी यह मान्यता है कि आकाश के गृह नक्षत्र मनुष्य के जीवन पर प्रभाव डालते है । आर्यभटीय ग्रन्थ विज्ञान पैर आधारित है । आर्यभट् की सबसे बड़ी उपलब्धि शून्य की उपयोगिता को बतलाना था जिसके आधार पर बड़ी संख्या को सरलता से लिखा जा सकता है । कंप्यूटर की की भाषा में शून्य का बहुत महत्व है । अंतरिक्ष की सभी गढ़नाए इसके बिना असंभव है । कुछ विधमानो के कथानुसार ' शून्य का ज्ञान भी सर्वप्रथम आर्यभट् ने ही दिया ।
आर्यभट् ने अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित के अनेक अनुसंधान किया ।और बताया कि यदि वृत्त का व्यास ज्ञात है थो वृत्त की परिधि मालूम की जा सकती है । आर्यभट् ने ज्यामिति के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिमा का अनुपम प्रदर्शन किया । उन्होंने त्रिकोड की तीन भुजाओं उसके कोणः का अधययन कर कोढ़ की मिति की नई पद्धति की ख़ोज की बाद में यूनानी गणितज्ञों ने भी इसकी चर्चा की और धीरे -धीरे यह ज्ञान यूरोप में फैला आज विद्यालयो में पढ़ाये जाने वाले रेखागणित को यूनानी गणितज्ञ की जयमिति पैर आधारित भले ही माना जाये पैर इसकी विस्तृत जड़े ' आर्यभट्यै में देखि जा सकती है ।
आर्यभट ने गणित तथा ज्योतिष के क्षेत्र में अनेक नये सिधान्त संसार को प्रदान किये जिनकी चर्चा भारत में ही नही विश्वभर के वैज्ञानिक बड़े सम्मान से कर रहे है ।
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